खाने की जब बात आती है तो कुछ लोगों के मन में तरह-तरह के व्यंजनों के चित्र बनने लगते हैं, उन्हें उन व्यंजनों की खुशबू आने लगती है, मुंह में पानी आ जाता है.
तो वहीं कुछ ऐसे लोग भी होते हैं जिन्हें खाने का नाम लेते ही उबकाई आने लगती है, मन भारी सा हो जाता है. ऐसी परेशानियों को ईटिंग डिसऑर्डर्स (Eating Disorders) कहा जाता है. यह एक मानसिक विकार है. हेल्थलाइन में छपी न्यूज रिपोर्ट के अनुसार, इन विकारों का वर्णन अमेरिकन साइकियाट्रिक एसोसिएशन के डायग्नोस्टिक एंड स्टैटिस्टिकल मैनुअल ऑफ मेंटल डिसऑर्डर, पांचवें संस्करण (DSM-5) में किया गया है. अकेले यूएसए में, अनुमानित 20 मिलियन महिलाओं और 10 मिलियन पुरुषों को अपनी लाइफ के कभी ना कभी खाने से जुड़ी समस्या या तो हुई है या वर्तमान में है. इस न्यूज रिपोर्ट के अनुसार, जुड़वा और गोद लिए लोगों पर हुई स्टडीज में पाया गया है कि ईटिंग डिसऑर्डर की वजह आनुवांशिक हो सकती है. वैसे तो ईटिंग डिसऑर्डर्स किसी भी उम्र और जेंडर के इंसान को हो सकता है, लेकिन इसकी चपेट में सबसे ज्यादा किशोर
और युवा महिलाएं आती हैं.
इसके अलावा जिन लोगों की आदत हर काम को परफैक्ट या जल्दबाजी में करने वाली होती है, वे भी इसके शिकार होते हैं. संप्रदाय, संस्कृति और दिमाग का स्ट्रक्चर भी ईटिंग डिसऑर्डर का कारण हो सकता हैं. यहां 6 सबसे आम प्रकार के खाने के विकारों यानी ईटिंग डिसऑर्डर्स (Eating Disorders) और उनके लक्षणों के बारे में बताया गया है.
एनोरेक्सिया नर्वोसा
एनोरेक्सिया नर्वोसा (Anorexia nervosa) डिसऑर्डर अक्सर किशोरावस्था में विकसित होता है और पुरुषों से ज्यादा महिलाओं को प्रभावित करता है. इससे पीड़ित लोग खुद को हमेशा मोटा महसूस करते हैं, भले ही वो पतले-दुबले क्यों न हों. एनोरेक्सिया नर्वोसा के मरीज ऐसे खाने से दूर रहते हैं, जिनसे उनका वजन बढ़ सकता है.
बुलिमिया नर्वोसा
एनोरेक्सिया की तरह ही बुलिमिया (Bulimia nervosa) भी किशोरावस्था में विकसित होता है और महिलाओं को ज्यादा प्रभावित करता है. बुलिमिया से पीड़ित लोगों को बहुत ज्यादा खाने की आदत होती है. वे तब तक खाते जाते हैं जब तक कि बीमार महसूस न करने लगें. ऐसे लोग खाने पर कंट्रोल नहीं कर पाते. वजन की निगरानी करने के कारण इनका आत्मविश्वास भी कम होता है.
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बिंज ईटिंग डिसऑर्डर
बिंज ईटिंग डिसऑर्डर (Binge eating disorder) डिसऑर्डर किशोरावस्था या युवावस्था में विकसित होता है. इसके लक्षण बुलिमिया नर्वोसा जैसे ही होते हैं. इससे पीड़ित लोग कम समय में बहुत ज्यादा खा लेते हैं. वे अपने खान-पान पर कंट्रोल नहीं कर पाते. इसके बाद खुद को इस गलती का दोषी मानकर शर्म महसूस करते हैं. बिंज ईटिंग डिसऑर्डर में लोग क्षतिपूर्ति नहीं करते हैं, इसलिए ये ओवरवेट या मोटे होते हैं. इन्हें दिल की बीमारी, डायबिटीज, स्ट्रोक आने का
खतरा ज्यादा होता है.
पिका
पिका ईटिंग डिसऑर्डर (Pica eating disorder) में लोग ऐसी चीजें खाते हैं जिन्हें फूड नहीं माना जाता. इसमें बर्फ, धूल, मिट्टी, चॉक, पेपर, साबुन, बाल, कपड़ा, ऊन, डिटर्जेंट आदि शामिल हैं. पिका सबसे ज्यादा बच्चों, प्रेग्नेंट महिलाओं और मानसिक बीमारियों से पीड़ित लोगों को अपना शिकार बनाता है. इन लोगों को पोषण की कमी रहती है और कुछ भी जहरीला खा लेने का डर बना रहता है.
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रुमिनेशन डिसऑर्डर
रुमिनेशन डिसऑर्डर (Rumination disorder) नवजात और छोटे बच्चों में विकसित होता है. ये वयस्कों को भी हो सकता है. इसमें व्यक्ति खाए गए भोजन को दोबारा उगलता है और उसे फिर से चबाता है. इसके बाद या तो चबाए गए
अवॉइडेंट/ रिस्ट्रिक्टिव फूड इनटेक डिसऑर्डर
अवॉइडेंट/ रिस्ट्रिक्टिव फूड इनटेक डिसऑर्डर Avoidant/restrictive food intake disorder) नवजात और छोटे बच्चों में विकसित होता है जो उनके वयस्क होने तक बना रह सकता है. ये महिलाओं और पुरुषों दोनों में कॉमन है. इसमें बच्चे खाने में बहुत ज्यादा आनाकानी करते हैं. एडल्ट होने पर भी बहुत कम खाना खाते हैं. ऐसे बच्चों और लोगों का वजन बहुत कम रहता है. इन्हें पोषण की कमी होती है. इस डिसऑर्डर के चलते बच्चों की लंबाई भी कम रह जाती है. उन्हें खाने की गंध, स्वाद, रंग, तापमान और बनावट से परेशानी होती है.