Lebanon Crisis: श्रीलंका के बाद यह देश भी हुआ कंगाल, मुद्रा मूल्य में 90 फीसदी गिरावट, सेंट्रल बैंक हुआ दिवालिया

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Lebanon Crisis: इन दिनों दुनिया की नजरें तीन जगह अटकी हैं. रूस यूक्रेन जंग (Russia Ukraine War), पाकिस्तान में मची सियासी उठा-पटक और श्रीलंका (Sri Lanka) की कंगाली.

इन तीन खबरों की भीड़ में श्रीलंका सा ही कंगाल होने वाले एक और भी देश की दिल दहला देती सच्चाई सामने आने लगी है. जी हां, हम बात कर रहे हैं लेबनान (Lebanon) की. देश का सेंट्रल बैंक दिवालिया हो चुका है. देश की मुद्रा के मूल्य में 90 फीसदी की गिरावट आ चुकी है. देश के उप-प्रधानमंत्री ने खुद कबूल लिया है कि उनका देश कंगाली के कगार पर आ खड़ा हुआ है.

इस देश में गरीबी संबंधी इकट्ठे किए गए आंकड़ों पर ही नजर डालें तो यहां की करीब 82 फीसदी आबादी गरीब हो चुकी है. लिहाजा कंगाल होते इस देश ने IMF से भी अब मदद की गुहार लगाई है. इन दिल दहलाने वाले सनसनीखेज तथ्यों का खुलासा खुद देश के उप-प्रधानमंत्री सादेह अल-शमी ने किया है. वे हाल ही में सऊदी अरब के चैनल अल-अरबिया से बात कर रहे थे. चैनल से बातचीत में लेबनान के उप प्रधानमंत्री सादेह अल-शमी ने कहा, “दुर्भाग्य से, केंद्रीय बैंक (Banque du Liban) और हमारा देश मतलब दोनो ही दिवालिया हो चुके हैं. हम जल्दी से जल्दी इस समस्या का कोई मजबूत हल निकालना चाहते हैं.”

लेबनानी उप-प्रधानमंत्री ने कबूली कमजोरी

चैनल से बातचीत में लेबनानी उप प्रधानमंत्री ने आगे कहा, “हम देश की दशकों पुरानी चली आ रही वाहियाती नीतियों के चलते इस बदहाली में आ पहुंचे हैं. अगर अब भी हमने कुछ नहीं किया, तो आईंदा और कितना कुछ नुकसान उठाना पड़ सकता है? फिलहाल इस पर कुछ नहीं कह सकते हैं. यह कुछ ऐसे महत्वपूर्ण तथ्य हैं जिन्हें हम नजरअंदाज नहीं कर सकते. हम हालातों से मुंह कैसे फेरें? हम सभी लोगों के लिए बैंकों से धन निकासी का इंतजाम तक नहीं कर पा रहे हैं. काश हम सामान्य स्थिति में होते. इन बदतर हालातो में भी हम अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के लगातार संपर्क में हैं. ताकि तुरंत फौरी मदद हासिल हो सके.”

2019 से हालत है खराब

उल्लेखनीय है कि लेबनान अक्टूबर 2019 से आर्थिक रूप से बुरी तरह से जूझ रहा है. यह सब सत्ताधारी राजनीतिक दल में फैले भ्रष्टाचार और कुप्रबंधन के चलते ही देखने को मिला है. लेबनान सरकार जानती तो सब थी. मगर वह हाथ पर हाथ धरे बैठी रही. और आज देश कंगाल भी हो चुका है. स्थानीय मुद्रा के मूल्य में 90 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है, जो किसी भी देश की आर्थिक रूप से टूट चुकी कमर की कमजोरी को मापने के लिए काफी है. मुद्रा मूल्य में गिरावट के चलते देश में महंगाई बेतहाशा बढ़ गई है. ठीक उसी तरह जैसे कि हिंदुस्तान के पड़ोसी मित्र देश श्रीलंका का हाल है. लेबनान की बात की जाए तो वहां आज देशवासियों को भरपेट रोटी भी मयस्सर नहीं हो रही है.

जिधर देखो उधर ही बदहाली का आलम

अधिकांश नागरिक स्वास्थ्य सुविधाओं से पूर्णत: वंचित हैं. शिक्षा का तो दूर दूर तक नामो निशान ही नहीं बचा है. ईंधन की कमी के चलते लोग अपने अपने घरों में रात के वक्त अंधेरे में रहने के मजबूर हो चुके हैं. दरअसल यहां यह भी बताना जरूरी है कि लेबनान उन देशों में शुमार है जो आयात पर निर्भर हैं. आर्थिक संकट के चलते देश का विदेशी मुद्रा भंडार भी खाली पड़ा है. लिहाजा लेबनान आज विदेश से सामान मंगवा पाने की हालत में भी नहीं रहा है. देश में बेरोजगारी की बात की जाए तो, वह बढ़कर 40 फीसदी पहुंच गई है.

जोकि किसी भी देश की बर्बादी मापने के लिए काफी है. रही सही कसर कोरोना सी महामारी ने पूरी कर दी. साल 2020 में बेरूत में एक बंदरगाह पर हुए भयानक विस्फोट ने आर्थिक संकट को और भी ज्यादा खतरनाक हाल में लाकर खड़ा कर दिया. कहा जाता है कि उस विस्फोट में 200 से ज्यादा लोग मारे गए थे.

उस घटना ने भी देश को बुरी तरह से तोड़कर रख दिया. उस विस्फोट से राजधानी बेरूत भी थर्रा गई थी.

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