एशियन टाइम्स ब्यूरो रिपोर्ट | पटना, बिहार
बिहार की राजनीति में एक बार फिर हलचल मच गई है। इस बार हलचल की वजह कोई चुनावी घोषणा नहीं, बल्कि राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी (रालोजपा) की रणनीतिक नई दिशा है, जो सीधे-सीधे अल्पसंख्यक समाज से जुड़ी हुई है। रालोजपा के प्रदेश अध्यक्ष प्रिंस राज पासवान ने मोहम्मद जावेद सिद्दीकी को पार्टी के अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ का बिहार प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया है। इस नियुक्ति ने राजनीतिक गलियारों में नई चर्चाओं को जन्म दे दिया है।
यह कदम केवल एक नियुक्ति भर नहीं है, बल्कि यह स्पष्ट संकेत है कि पशुपति कुमार पारस के नेतृत्व में रालोजपा अब मुस्लिम समुदाय की ओर राजनीतिक झुकाव दिखा रही है। यह कोशिश पार्टी के भविष्य की दिशा और आगामी विधानसभा व लोकसभा चुनावों में अल्पसंख्यक मतों को साधने की एक सुनियोजित रणनीति का हिस्सा लगती है।
कौन हैं मोहम्मद जावेद सिद्दीकी?
पटना स्थित अनीसाबाद के रहने वाले मोहम्मद जावेद सिद्दीकी एक सामाजिक कार्यकर्ता और शिक्षाविद् हैं, जिन्होंने वर्षों से अल्पसंख्यक समाज में शिक्षा, स्वास्थ्य और हक़ की लड़ाई के लिए काम किया है। उनका नाम ना सिर्फ़ पटना में बल्कि पूरे बिहार में अल्पसंख्यक समाज की समस्याओं को लेकर मुखरता से उठाने वालों में गिना जाता है।
पार्टी ने उन्हें अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ का प्रदेश अध्यक्ष बनाकर साफ कर दिया है कि वे अब जमीनी कार्यकर्ताओं को संगठन से जोड़ना चाहती है और मुस्लिम समाज के भीतर अपनी पैठ मजबूत करना चाहती है।
प्रदेश अध्यक्ष प्रिंस राज पासवान का संदेश
नियुक्ति पत्र में प्रिंस राज पासवान ने उम्मीद जताई है कि “आप (मोहम्मद जावेद सिद्दीकी) पूर्ण निष्ठा, लगनशीलता, कार्यकुशलता एवं पूरी क्षमता से पार्टी की विचारधारा से जुड़े हुए साथियों को संगठित कर पार्टी को मजबूती प्रदान करेंगे।” साथ ही यह भी निर्देशित किया गया है कि पत्र निर्गत होने की तिथि से 30 दिनों के भीतर जिला कमिटी की सूची प्रदेश कार्यालय को सौंपें।
यह निर्देश इस बात का भी संकेत है कि पार्टी अब संघठनात्मक रूप से अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ को धार देने की ओर अग्रसर है।
राजनीतिक समीकरणों में बदलाव के संकेत
बिहार की राजनीति में अल्पसंख्यक समाज एक अहम भूमिका निभाता है। लगभग 17% आबादी वाले मुस्लिम समाज का झुकाव अब तक राष्ट्रीय जनता दल (राजद), कांग्रेस, और सीमित स्तर पर जेडीयू की ओर रहा है। लेकिन रालोजपा का यह नया कदम उस वोट बैंक में सेंध लगाने की रणनीति के रूप में देखा जा रहा है।
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि पशुपति कुमार पारस अब पार्टी को केवल ‘दलित हितैषी’ छवि से आगे ले जाकर समावेशी राजनीति की ओर बढ़ाना चाहते हैं। मुस्लिम चेहरे को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर न केवल अल्पसंख्यक समाज में विश्वास पैदा किया जा रहा है, बल्कि आगामी चुनावों में संगठनात्मक तौर पर मुस्लिम इलाकों में विस्तार की तैयारी भी की जा रही है।
बड़ी राजनीतिक हस्तियों की मौजूदगी ने बढ़ाई गंभीरता
इस मौके पर रालोजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष पशुपति कुमार पारस, प्रदेश अध्यक्ष प्रिंस राज पासवान, राष्ट्रीय संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष सूरजभान सिंह, प्रदेश महासचिव केशव सिंह और वरिष्ठ प्रदेश नेता महताब आलम की गरिमामयी उपस्थिति रही।
इस बात को हल्के में नहीं लिया जा सकता, क्योंकि इन तमाम नेताओं की एक साथ उपस्थिति यह दर्शाती है कि पार्टी ने इस निर्णय को बेहद सोच-समझकर और रणनीतिक तौर पर लिया है।
बिहार की सियासत में हलचल
बिहार के मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों में अब रालोजपा की चर्चा शुरू हो गई है। कई जिलों में पार्टी कार्यकर्ताओं ने बैठकें कर इस नई नियुक्ति का स्वागत किया है। सोशल मीडिया पर भी मोहम्मद जावेद सिद्दीकी के समर्थन में कई पोस्ट वायरल हो रही हैं।
कुछ राजनीतिक जानकारों का कहना है कि यह नियुक्ति आने वाले समय में राजद और कांग्रेस के लिए चिंता का विषय बन सकती है, खासकर अगर रालोजपा मुस्लिम युवाओं को संगठित करने में सफल हो गई।
पार्टी सूत्रों के अनुसार, मोहम्मद जावेद सिद्दीकी आने वाले हफ्तों में बिहार के सभी जिलों का दौरा करेंगे और अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ की जिला इकाइयों का गठन करेंगे। वे स्थानीय मस्जिदों, मदरसों और मुस्लिम संगठनों से संवाद स्थापित करेंगे, ताकि रालोजपा की नीतियों और योजनाओं को जमीनी स्तर पर पहुंचाया जा सके।
सूत्रों के मुताबिक, पार्टी जल्द ही एक “अल्पसंख्यक अधिकार यात्रा” भी शुरू करने की योजना बना रही है, जिसकी अगुवाई खुद जावेद सिद्दीकी करेंगे। इस यात्रा के माध्यम से अल्पसंख्यकों को शिक्षा, रोजगार और सामाजिक न्याय के मुद्दों पर जागरूक किया जाएगा।
मुस्लिम मतदाताओं
पटना से लेकर दरभंगा और किशनगंज तक, मुस्लिम समाज में इस नियुक्ति को लेकर मिश्रित प्रतिक्रियाएं देखने को मिल रही हैं। कुछ लोग इसे स्वागत योग्य कदम मान रहे हैं, वहीं कुछ इसे एक चुनावी हथकंडा करार दे रहे हैं।
हालांकि, मोहम्मद जावेद सिद्दीकी का साफ कहना है कि –
“यह कोई चुनावी चाल नहीं, बल्कि एक मिशन है। हमारा मकसद केवल राजनीति नहीं, बल्कि समाज की सेवा है। मैं हर गांव और हर कस्बे तक पहुंचकर लोगों की समस्याएं सुनूंगा और उन्हें समाधान दिलाने की कोशिश
राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी की यह रणनीति यदि सही दिशा में आगे बढ़ती है, तो वह बिहार की पारंपरिक राजनीतिक धारा को बदल सकती है। पशुपति कुमार पारस की यह पहल उन्हें महज लोक जनशक्ति पार्टी के उत्तराधिकारी से हटाकर एक समावेशी नेता के रूप में स्थापित कर सकती है।
अब देखना यह है कि जावेद सिद्दीकी पार्टी के विश्वास पर कितना खरा उतरते हैं और क्या वाकई वे अल्पसंख्यक समाज को रालोजपा के साथ जोड़ पाने में सफल होंगे? यह आने वाले महीनों में बिहार की राजनीति की दिशा तय करने में अहम भूमिका निभा सकता है।
एशियन टाइम्स ब्यूरो | पटना
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