PM MODI फिर राजनीतिक पंडितों को देंगे सरप्राइज, क्या गुलाम नबी आजाद को उपराष्ट्रपति बनाने की है तैयारी!

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एक दिलचस्प कहानी है कि कैसे उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू के हाथ से राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी फिसल गई. हालांकि वे 2017 में केंद्रीय मंत्रिमंडल में बने रहने से खुश थे, लेकिन मोदी ने उन्हें उपराष्ट्रपति पद स्वीकार करने के लिए मनाया क्योंकि उनके पास संसद में समृद्ध अनुभव है.

पार्टी को राज्यसभा के सभापति के रूप में भी उनकी जरूरत थी क्योंकि राजग राज्यसभा में निराशाजनक रूप से अल्पमत में था.

स्वर्गीय अरुण जेटली द्वारा नायडू को उम्मीदवारी स्वीकार करने के लिए कैसे राजी किया गया यह एक अलग कहानी है. तब कहा गया था कि 2022 में नायडू को राष्ट्रपति के पद पर पदोन्नत किया जा सकता है. लेकिन नायडू के हाथ से उम्मीदवारी फिसल गई और यह एक दर्दनाक निर्णय भी था. इस निर्णय से उन्हें कैसे अवगत कराया गया यह मोदी की अपनी नायाब कार्यशैली का उदाहरण है.

नायडू 20 जून को आंध्र प्रदेश के 3 दिवसीय दौरे पर रवाना हुए थे. पता चला है कि मोदी ने उन्हें फोन करके कहा कि क्या वे एक बहुत ही महत्वपूर्ण मुद्दे पर चर्चा के लिए दिल्ली आ सकते हैं. अपना दौरा खत्म कर नायडू दिल्ली लौट आए. भाजपा अध्यक्ष जे.पी. नड्डा, राजनाथ सिंह और अमित शाह ने 21 जून को उनसे मुलाकात की. नड्डा ने कहा कि राष्ट्रपति पद के कुछ उम्मीदवार हैं जिन्हें पार्टी ने शॉर्टलिस्ट किया है और उनके सुझावों की जरूरत है.

संभावितों की सूची में द्रौपदी मुर्मू का नाम आया. यह राजनीतिक चतुराई और राजनीति विज्ञान के छात्रों के लिए एक सबक है कि बिना तीर के कैसे शिकार किया जा सकता है. भाजपा ने 21 जून की शाम को राष्ट्रपति पद के अपने उम्मीदवार की घोषणा की. बाकी इतिहास है.

मुर्मू रबर स्टैंप नहीं
राष्ट्रपति पद की एनडीए की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू एक ‘रबर स्टैंप’ राष्ट्रपति नहीं हो सकती हैं, जैसा कि उनके प्रतिद्वंद्वी यशवंत सिन्हा ने आरोप लगाया है. वे कॉपी-बुक प्रेसिडेंट बन सकती हैं. झारखंड के पूर्व राज्यपाल पद का उनका कार्यकाल इसका उदाहरण है. नवंबर 2016 में रघुबर दास सरकार द्वारा भेजे गए भूमि काश्तकारी कानूनों से संबंधित दो विधेयकों को वापस करने की उन्होंने दृढ़ता दिखाई.

भाजपा द्वारा उन पर दबाव डालने के बावजूद उन्होंने उन पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया. रघुबर दास ने दिल्ली में गुहार लगाई और यहां तक कि उनके स्थानांतरण या बर्खास्तगी की भी मांग की. संशोधन कृषि भूमि को गैर-कृषि उद्देश्यों के लिए अनुमति देने संबंधी था, जिसे आदिवासी नेताओं ने व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए अधिग्रहण करने का प्रयास करार दिया. मुर्मू शांत थीं और उन्होंने भाजपा सरकार से पूछा कि इन संशोधनों से आदिवासियों को कैसे फायदा होगा.

मुर्मू के कार्यों ने सत्तारूढ़ भाजपा को झकझोर दिया क्योंकि इन संशोधनों का कांग्रेस, झामुमो, आदिवासी संगठनों और यहां तक कि चर्च ने भी कड़ा विरोध किया था. मुर्मू का यह कदम उस विपक्ष के लिए वरदान साबित हो सकता था जो मौके की तलाश में था. तत्कालीन भाजपा महासचिव राम माधव ने रांची का दौरा किया और राज्यपाल से शिष्टाचार भेंट की.

इसलिए, जो लोग सोचते हैं कि एक आदिवासी महिला होने के नाते वे कमजोर होंगी या रबर स्टैंप प्रेसिडेंट, वे मूर्खों के स्वर्ग में हो सकते हैं. कई लोगों का कहना है कि वे 2017 में भी राष्ट्रपति पद की दावेदारी में थीं. लेकिन दो विधेयकों पर विवाद के चलते वे कोविंद से पीछे रह गईं. यह अलग बात है कि रघुबर दास भी चुनाव हार गए क्योंकि उनकी सरकार के आदिवासी विरोधी होने की जनधारणा बन गई थी.

आजाद उपराष्ट्रपति बनेंगे!
उपराष्ट्रपति पद के लिए जो नाम चर्चा में हैं, उनमें गुलाम नबी आजाद का नाम सत्तारूढ़ सरकार के गलियारे से सामने आया है. मौजूदा एम. वेंकैया नायडू द्वारा फिर से नामांकन के लिए विचार करने से इंकार किए जाने के बाद, साउथ ब्लॉक के गलियारों में कांग्रेस के दिग्गज नेता गुलाम नबी आजाद के नाम की चर्चा है.

हालांकि राजनाथ सिंह, हरदीप सिंह पुरी, आरिफ मोहम्मद खान, मुख्तार अब्बास नकवी, तेलंगाना से सी. विद्यासागर राव और अन्य के नामों की भी चर्चा है, लेकिन कहा जाता है कि आजाद सरप्राइज चयन हो सकते हैं और हों भी क्यों नहीं. गुलाम नबी आजाद मौजूदा राजनीतिक माहौल में कसौटी पर खरे उतरते हैं.

भाजपा 10 जुलाई से पहले अपनी पसंद की घोषणा करने के लिए तैयार है. आजाद के पास विशाल राजनीतिक अनुभव है, 1980 से वे संसद का हिस्सा हैं, गैर-विवादास्पद हैं और पार्टी लाइन से इतर व्यापक स्वीकार्यता है और सबसे ऊपर, यह कांग्रेस पर एक और कील हो सकती है. मोदी ने आजाद की प्रशंसा की थी और यहां तक कि 2003 में उनके जम्मू-कश्मीर का मुख्यमंत्री रहते हुए अपने व्यक्तिगत संबंधों का भी खुलासा किया.

मोदी ने उन्हें मार्च 2022 में पद्म भूषण से सम्मानित किया. पीएम दुनिया को एक मजबूत संकेत भेजना पसंद कर सकते हैं कि उनकी सरकार अल्पसंख्यकों की परवाह करती है. आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने हाल ही में हर मस्जिद के खिलाफ अभियान छेड़ने का कड़ा विरोध किया था. फिर कट्टरपंथियों के ताबूत में अंतिम कील तब आई जब एनएसए अजित डोभाल ने एक असामान्य साक्षात्कार में कहा कि ‘हमें दुनिया को आश्वस्त करने की आवश्यकता है.’ आजाद भी मोदी की ‘पहचान की राजनीति’ में फिट बैठते हैं. लेकिन मोदी राजनीतिक पंडितों को सरप्राइज देने के लिए जाने जाते हैं.

SOURCE DAINK JGARAN

 

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