सस्ती दवाएं, बेहतर इलाज – सेवा ही सच्चा धर्म
नई दिल्ली।
कभी भारत में हालात ऐसे थे जब गरीब पिता को अपने बीमार बच्चे की दवा के लिए उधार मांगना पड़ता था। किसी माँ को बेटे की पर्ची देखकर यह सोचना पड़ता था कि “आज घर में खाना बने या दवा खरीदी जाए?” बीमारी का दर्द तो अलग था, लेकिन उससे बड़ा दर्द जेब पर पड़ने वाला बोझ हुआ करता था।
लेकिन अब तस्वीर बदल रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जनहितकारी सोच से शुरू हुई “प्रधानमंत्री भारतीय जनऔषधि योजना” (PMBJP) ने आम आदमी को राहत दी है। इस योजना के तहत देशभर में 11,000 से अधिक केंद्र खुल चुके हैं, जहाँ जेनेरिक दवाएं 50% से 90% तक सस्ती दरों पर उपलब्ध हैं। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, अब तक 20 करोड़ से ज्यादा नागरिकों को सीधा लाभ मिला है और लोगों की जेब से लगभग 25,000 करोड़ रुपये की बचत हुई है। पहले जहाँ इलाज का लगभग 65% खर्च आम आदमी को अपनी जेब से उठाना पड़ता था, वहीं अब सस्ती दवाओं की उपलब्धता ने गरीब और मध्यमवर्गीय परिवारों को बड़ी राहत दी है।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह केवल एक योजना नहीं, बल्कि गरीब के चेहरे पर मुस्कान लाने वाली सेवा है। यही वजह है कि इसे “सेवा परमो धर्मः” की भावना से जोड़ा जा रहा है।
धार्मिक दृष्टिकोण से भी इलाज को सेवा और इबादत बताया गया है। आयुर्वेद में चिकित्सा को “दैवोपचार” यानी ईश्वर की प्रेरणा से किया गया कार्य माना गया है। कुरआन में कहा गया है:
“और जिसने एक जान को बचाया, उसने पूरी मानवता को बचाया।” (सूरह अल-मायदा 5:32)
रसूलुल्लाह ﷺ ने भी इरशाद फरमाया:
“अल्लाह ने कोई बीमारी नहीं उतारी, मगर उसके साथ उसका इलाज भी उतारा है।” (सहीह बुख़ारी, हदीस नं. 5678)
इन शिक्षाओं से यह स्पष्ट है कि इलाज करना और सस्ती दवाएं उपलब्ध कराना केवल धार्मिक संदेश नहीं, बल्कि मानवीय जिम्मेदारी भी है।
आज का भारत इस दिशा में तेज़ी से आगे बढ़ रहा है, जहाँ स्वास्थ्य सेवा अमीरों की विलासिता नहीं, बल्कि हर नागरिक का अधिकार बन चुकी है।
सस्ती दवाएं केवल इलाज नहीं, बल्कि विश्वास, राहत और उम्मीद देती हैं।
यह नया भारत है — जहाँ सेवा ही सच्चा धर्म और इलाज ही सबसे बड़ी इबादत बन चुकी है।
✍️ रिपोर्ट: एम.एच.के.
Author: Noida Desk
मुख्य संपादक (Editor in Chief)







