(बोकारो)। अंग्रेजों से भारत को आज़ाद करने के लिए जो स्वतंत्रता आंदोलन शुरू हुआ उसमें पत्रकारों की अहम भूमिका शुरू से रही है। स्वतंत्रता आंदोलन को अंजाम तक पहुंचाने का काम में भी पत्रकारों ने अहम भूमिका निभाया था।
उन्होंने अपनी पत्र पत्रिकाओं से जो चिंगारी भड़काई वह इतना विकराल ज्वाला बनकर सामने आया कि अंग्रेजो को घुटने टेकने पड़े और आज़ादी देनी पड़ी। बल्कि यह कहा जाय कि पत्रकारों के प्रयास से अनगिनत आंदोलनकारियो का बलिदान, संघर्ष, तपस्या और प्रयास से 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ।
सर्वप्रथम 8 फरवरी 1857 को पत्रकार अजीमुल्ला खान ने “पयामे आज़ादी “नामक पत्र निकाल कर अपनी अमर अपील “हम है इसके मालिक, हिंदुस्तान हमारा पाक वतन है कौम का, जन्नत से भी प्यारा” से ऐसी चिंगारी भड़काई की अंग्रेज जल भून गए और भारतीय जाग गए।
फिर कई लेखो से ज्वाला भड़काई गयी जो 1857 के गदर (सिपाही विद्रोह) के रूप में सामने आया। अंग्रेजो ने पत्र बन्द कराने के बहुत प्रयास किये, परन्तु पत्र लोगो के बीच मे बंटते रहा।
उसके बाद प्रजा हितैषी, बुद्धि प्रकाश, मजहरुल लरुल, ग्वालियर गजट, धर्म प्रकाश, भारतखंड मित्र, ज्ञान प्रदायिनी, वृतांत विलास आदि पत्रों ने आज़ादी की लड़ाई तेज किया। महानायक भारतेंदु हरिश्चंद्र ने अपनी पत्र पत्रिकाओं तथा रचनाओं से स्वतंत्रता आंदोलन को धार दिया।
उनकी अमर पंक्ति है “चहहु जो साचो निज कल्याण, जपहु निरंतर एक जवान, हिंदी हिन्दू हिंदुस्तान” जिससे स्वतंत्रता संग्राम के जुनून हर भारतीयों के सर चढ़कर बोलने लगा।
23 मार्च 1874 को छपे उनके लेख, विदेशी वस्तु छोड़ो, देशी अपनाओ का भी काफी असर रहा। बाद में महात्मा गांधी, लाला लाजपत राय, स्विडिस समाजसेवी एनि वेसेंट आदि स्वतंत्रता सेनानियों ने कई पत्र पत्रिका निकाल कर स्वतंत्रता आंदोलन को धार दिया।
इस दौरान लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के पत्र हिंद केशरी का काफी असर हुआ। “अंग्रेजो भारत छोड़ो” और सत्याग्रह आंदोलन शुरू करने वाले पत्रकार महात्मा गांधी के बारे में अंग्रेज कहते हैं “ईफ़ दी गोनिंग ऑफ इंडिपेंडेंस, कैन वी सेंड दी वर्क ऑफ एनी वन पर्सन ही इज महात्मा गांधी वनली”।