बिहार में जमीन विवाद से बढ़ती हत्याएँ: असर्फी राय की गोलीकांड घटना ने खोले सिस्टम की पोल

बिहार में जमीन विवाद से बढ़ती हत्याएँ: असर्फी राय की गोलीकांड घटना ने खोले सिस्टम की पोल

 ग्राउंड रिपोर्ट  | Asian Times जमीन के नाम पर बहता खून

बिहार में जमीन विवाद कोई नई समस्या नहीं। सदियों से यहाँ खेत, खलिहान, बटाई, सीमांकन और पुरानी रंजिशों को लेकर झगड़े होते रहे हैं। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में ये विवाद सिर्फ मुकदमों तक सीमित नहीं रह गए—अब सीधा गोली, हत्या और भीड़तंत्र का सहारा लिया जा रहा है।
ताज़ा उदाहरण है असर्फी राय गोलीकांड, जिसने एक बार फिर साबित कर दिया कि जमीन विवाद अब प्रशासन और पुलिस की पकड़ से बाहर निकलकर अपराधियों और माफियाओं के हाथों का खेल बन चुका है। बिहार में जमीन विवाद: एक खतरनाक

बिहार पुलिस के आंकड़े बताते हैं कि राज्य में दर्ज होने वाले कुल अपराधों में से लगभग 22–25% मामले जमीन विवाद से जुड़े होते हैं।
लेकिन असलियत इससे भी ज़्यादा डरावनी है—क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों में कई मामले दर्ज ही नहीं होते, या FIR से पहले ही स्थानीय दबंगों या दलालों द्वारा “समझौता” करवा दिया जाता है।

ग्रामीण इलाक़ों में जमीन सिर्फ़ संपत्ति नहीं,
इज़्ज़त, परंपरा और वंश का प्रतीक है।
यही कारण है कि मामूली झगड़े भी हत्या तक पहुँच जाते हैं। असर्फी राय गोलीकांड: एक सीधी, सच्ची कहानी

असर्फी राय की उम्र लगभग 75 के आसपास थी। गाँव-समाज में उनका नाम था, मेहनती और शांत स्वभाव के व्यक्ति के तौर पर पहचाने जाते थे।
लेकिन कुछ समय से उनकी पुश्तैनी जमीन पर विवाद चल रहा था—दूसरे पक्ष का दावा था कि वो जमीन उनकी है, जबकि असर्फी राय के परिवार के पास पुराना खाता-खेसरा, रसीद और दाखिल-खारिज के सभी कागज़ात मौजूद थे।घटना का दिन गाँव में सुबह का समय था।
असर्फी राय बाजार की तरफ जा रहे थे, तभी घात लगाकर बैठे अपराधियों ने उन पर फायरिंग कर दी।
सीने में दो गोलियां लगीं।
गंभीर हालत में अस्पताल ले जाया गया लेकिन बचाया नहीं जा सका।

स्थानीय लोगों का दावा

गाँव वालों ने बताया कि

अपराधियों को पहले से पता था कि असर्फी राय कहाँ से निकलेंगे।

घटना पूरी तरह योजनाबद्ध थी।

जमीन विवाद को लेकर पहले भी धमकियां मिल रही थीं।

पुलिस को कई बार शिकायत हुई थी लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। परिवार का आरोप असर्फी राय के परिजनों का आरोप है कि प्रशासन की लापरवाही और मिलीभगत ने एक निर्दोष की जान ले ली।
जिन लोगों से विवाद था, वे खुलेआम घूमते रहे।  पुलिस ने पहले मामले को हल्के में लिया, FIR भी देर से दर्ज की।जमीन विवाद में माफिया और दलालों का बढ़ता नेटवर्क बिहार में एक नया “लैंड माफिया मॉडल” विकसित हुआ है—
जिसमें  भू-माफिया . दलाल .दबंग  भ्रष्ट अधिकारी  और राजनीति का एक हिस्सा
सब अपने-अपने फायदा के लिए एक साथ काम करते हैं। ये माफिया फर्जी कागजात तैयार करवाते हैं जमीन पर कब्जा दिलवाते हैं गलत सीमांकन कराते हैं और विरोध करने पर सीधे धमकी या हमला कर देते हैं। असर्फी राय जैसे सैकड़ों लोग इसी नेटवर्क के शिकार बन रहे हैं।  फर्जी मुकदमे: एक नया हथियार  जमीन विवाद में अब फर्जी केस दर्ज करवाना एक सामान्य रणनीति बन चुकी है। लोग विरोधी पक्ष को डराने और कमजोर करने के लिए—107 / 116 CrPC  SC/ST Act का दुरुपयोग  मारपीट, छेड़खानी या चोरी जैसे फर्जी केस और यहाँ तक कि अपहरण का मामला भी दर्ज करवा देते हैं  जिससे असली पीड़ित ही अपराधी बन जाता है, और दबंग आसानी से जमीन पर कब्जा जमा लेते हैं।  पुलिस व्यवस्था पर सवालअसर्फी राय मामले ने कई सवाल खड़े किए: पुलिस शिकायत को क्यों नज़रअंदाज़ किया गया? परिवार का कहना है कि उन्होंने कई बार लिखित शिकायत दी थी।जमीन विवाद युक्त क्षेत्रों में Beat Police सिस्टम क्यों फेल है?
सीमांकन और दाखिल-खारिज में घुसपैठ कैसे हो जाती है?
अपराधियों को हथियार कहाँ से मिलते हैं?  स्थानीय थाने पर बाहरी दबाव क्यों काम करता है? जब तक इन सवालों का जवाब प्रशासन नहीं देगा, तब तक ऐसी हत्याएँ जारी रहेंगी।  बिहार में जमीन विवाद से मौतों के बढ़ते आंकड़े पिछले 5 वर्षों में वर्ष जमीन विवाद से मौतें
                                                                    2020- 187
                                                                    2021- 211
                                                                    2022- 268
                                                                    2023- 305
                                                                    2024- 312

2025 में यह संख्या और बढ़ी है, क्योंकि हर महीने लगभग 25–30 ऐसे मामले सामने आ रहे हैं। यह आँकड़ा स्पष्ट बताता है कि जमीन विवाद बिहार में
धीमी लेकिन स्थाई गृहयुद्ध जैसी स्थिति पैदा कर रहा है।  सामाजिक मनोविज्ञान: आखिर जमीन क्यों होती है विवाद की जड़? जमीन = भविष्य की सुरक्षा गाँव में नौकरी नहीं, उद्योग नहीं।
लोग जमीन को ही अपना भविष्य मानते हैं। छोटी-छोटी जमीनें बिहार में औसतन कृषि भूमि बेहद छोटी हो चुकी है।
थोड़ी सी भी जमीन कट जाए, तो परिवार आर्थिक रूप से टूट जाता है। पुरानी दुश्मनी

गाँवों में वंशानुगत विवाद पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलते रहते हैं। कानून तक पहुंच की कमी

गरीब लोग वकील, कागज और कोर्ट केस का खर्च नहीं उठा पाते।

यह सब मिलकर जमीन विवाद को खतरनाक हिंसा में बदल देता है। असर्फी राय हत्याकांड की जांच की मांग पीड़ित परिवार और ग्रामीणों की मुख्य मांगें: हत्या की CBI या स्पीडी ट्रायल कोर्ट से जांच
विवादित जमीन का तुरंत वैज्ञानिक सीमांकन
पुलिस अधिकारियों पर कार्रवाई
आरोपियों की अविलंब गिरफ्तारी
परिवार को आर्थिक सहायता  लैंड माफिया पर जिला स्तरीय विशेष ऑपरेशन  सरकार और प्रशासन को क्या कदम उठाने चाहिए? बिहार सरकार इस समय कानून व्यवस्था को मजबूत करने का दावा कर रही है।
लेकिन जमीन विवाद पर कोई समग्र नीति नहीं लाई गई है। यहाँ कुछ महत्वपूर्ण सुझाव भूमि विवाद निवारण विशेष प्रकोष्ठ हर जिले में Land Dispute Fast Redressal Cell बने।  डिजिटल सीमांकन और मैप अपडेट सभी खाता-खेसरा को एक ही पोर्टल में अपडेट किया जाए।  लैंड माफिया पर स्पेशल टास्क फोर्स राज्य स्तर पर STF बनकर इन्हें टारगेट करे। पुलिस की जवाबदेही अगर किसी विवादित परिवार की पूर्व शिकायत के बावजूद हत्या हो,
तो संबंधित थाना प्रभारी पर तत्काल निलंबन। फर्जी केसों की जांच फर्जी मुकदमों में शामिल अधिकारियों और दलालों पर सख्त कार्रवाई।  जमीन विवाद से जुड़ी राजनीति यह समस्या सिर्फ आपराधिक नहीं, बल्कि राजनीतिक भी है। कई इलाकों में चुनाव इसी बात पर लड़े जाते हैं कि
कौन किसका कब्जा छुड़ाएगा या दिलवाएगा। स्थानीय नेताओं की सीमा, दोस्ती और दबाव
पुलिस की कार्रवाई पर असर डालते हैं। असर्फी राय मामले में भी यही आशंका जताई जा रही है कि
राजनीतिक दबाव के कारण पहले कार्रवाई नहीं हुई। ग्रामीण न्याय प्रणाली की विफलता गाँवों में पंचायत होती है, लेकिन कई जगह दलाल और दबंग उसमें बैठते हैं।
निर्णय ताकत के आधार पर होता है,
कानून के आधार पर नहीं। इस वजह से गरीब परिवार अदालत जाने के अलावा कोई रास्ता नहीं देखता,
और अदालत के चक्कर वर्षों तक चलते रहते हैं। जब न्याय देर से मिलता है,
तो लोग हथियार उठाने को मजबूर हो जाते हैं। असर्फी राय मामले का सामाजिक प्रभाव गाँव के लोग इस हत्या से दहशत में हैं। हर परिवार को लग रहा है कि “आज असर्फी राय मारे गए,
कल कोई और भी मारा जा सकता है।” स्कूल जाने वाले बच्चे भी डरे हुए हैं।
महिलाएँ शाम होते ही घरों में दरवाजे बंद कर लेती हैं। यह सिर्फ एक हत्या नहीं पूरा समाज डरा हुआ है। समाधान: क्या बिहार इस रक्तपात से बाहर आ सकता है? हाँ, लेकिन इसके लिए तीन स्तरों पर काम करना होगा— सरकारी स्तर डिजिटल भूमि सुधार फास्ट ट्रैक कोर्ट सख्त पुलिसिंग माफिया पर सीधी कार्रवाई सामाजिक स्तर गाँवों में मध्यस्थता समितियाँ पंचायतों को पारदर्शी करना कानूनी स्तर फर्जी केस रोकने की नीति सीमांकन प्रक्रिया में तकनीकी पारदर्शिता अगर ये कदम उठाए जाएं तो
बिहार में जमीन के नाम पर होने वाली हत्याएँ 60–70% तक घट सकती हैं। असर्फी राय की हत्या एक व्यक्ति की मौत नहीं यह सिस्टम की विफलता, प्रशासन की सुस्ती,
और जमीन विवाद की खतरनाक राजनीति का परिणाम है। बिहार सरकार को इसे गंभीरता से लेना ही होगा,
क्योंकि अब भूमि विवाद सिर्फ झगड़ा नहीं, मौत का कारोबार बन चुका है। असर्फी राय जैसे निर्दोष लोगों के खून से यह सवाल उभरता है आखिर कब तक बिहार जमीन के लिए खून बहाता रहेगा?”

@tanvir alam sheikh

Noida Desk
Author: Noida Desk

मुख्य संपादक (Editor in Chief)

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