Asian Times Bureau Report – Ghaziabad
वरिष्ठ नागरिक: हमारे समाज की अमानत, हमारा कर्तव्य
जब एक नवजात शिशु पहली बार चलना सीखता है, तो माँ-बाप उसके हर कदम को थामते हैं। जब वह बीमार पड़ता है, तो वही माता-पिता रात-रातभर जगकर दुआएँ और दवाइयाँ देते हैं। और जब वही माता-पिता बुढ़ापे में कमजोर होते हैं, तो क्या हम उनका हाथ थामने में पीछे हट जाएँ? अगर ऐसा होता है, तो यह केवल अन्याय नहीं—बल्कि इंसानियत के नाम पर धब्बा है।
भारत में आज 14 करोड़ से अधिक वरिष्ठ नागरिक हैं। इनमें से बड़ी संख्या ऐसे बुज़ुर्गों की है जो जीवन के आख़िरी पड़ाव पर सम्मान और सहारे के भूखे हैं। उनकी आँखों में तरस और दिल में अकेलापन है, जबकि उन्होंने अपनी जवानी हमें समर्पित कर दी।
दुनिया भर में बुज़ुर्गों के साथ व्यवहार अलग-अलग है। उदाहरण के तौर पर जापान में बुज़ुर्गों को “जीवित देवता” की तरह माना जाता है। वहीं नॉर्डिक देशों (स्वीडन, नॉर्वे, डेनमार्क) में बुज़ुर्गों के लिए बेहतरीन स्वास्थ्य सेवाएँ, पेंशन और सामाजिक सुरक्षा का सिस्टम है। इसके उलट कई देशों में बुज़ुर्गों की स्थिति बेहद दयनीय है—कई बार उन्हें अपने ही परिवार से उपेक्षा और तिरस्कार झेलना पड़ता है।
भारत में भी सरकार वरिष्ठ नागरिक पेंशन योजना, आयुष्मान भारत कार्ड और हेल्पलाइन सेवाएँ चला रही है। लेकिन सच तो यह है कि असली सहारा न तो सरकार है और न कोई संस्था—वह सहारा केवल परिवार और समाज से मिलता है।
इस्लाम बुज़ुर्गों की इज़्ज़त और ख़िदमत को ईमान का हिस्सा मानता है। कुरआन में साफ़ हिदायत है:
“अपने माँ-बाप के साथ अच्छा व्यवहार करो। अगर वे बुढ़ापे में से किसी एक या दोनों तुम्हारे पास हों, तो उन्हें ‘उफ़’ तक न कहो और न उन्हें झिड़को; बल्कि उनसे इज़्ज़त से बात करो।” (सूरह अल-इस्रा: 23)
हज़रत मुहम्मद ﷺ ने फरमाया:
“वह हम में से नहीं, जो हमारे छोटे बच्चों पर रहम न करे और हमारे बुज़ुर्गों की इज़्ज़त न करे।” (तिर्मिज़ी)
सोचिए, जिस धरती पर बुज़ुर्गों की दुआओं और परवाह से हम पले-बढ़े, उसी धरती पर अगर वे तन्हाई में आँसू बहाएँ तो यह हमारे लिए शर्म की बात है।
बुज़ुर्ग केवल अतीत की यादें नहीं, बल्कि अनुभव, संस्कार और दुआओं का वह खज़ाना हैं, जिनसे समाज समृद्ध होता है। घर तभी “घर” है जब उसमें बुज़ुर्गों की दुआएँ गूँजती हों।
आज हमें तय करना होगा—क्या हम उन्हें अकेलेपन और गुमनामी में ढकेल देंगे, या उनके हर दिन को रोशनी और इज़्ज़त से भर देंगे? समाज की असली तरक़्क़ी मॉल और इमारतों से नहीं मापी जाती, बल्कि इस बात से आँकी जाती है कि वह अपने बुज़ुर्गों के साथ कैसा व्यवहार करता है।
याद रखिए, आज हम अपने माँ-बाप का सहारा बनेंगे तो कल हमारी औलाद भी हमें गले लगाएगी।
वरिष्ठ नागरिकों का सम्मान कोई उपकार नहीं, बल्कि यह हमारी ज़िम्मेदारी, इंसानियत और ईमान की पहचान है।

Author: Bihar Desk
मुख्य संपादक (Editor in Chief)