एशियन टाइम्स ब्यूरो, नई दिल्ली।
दिल्ली के करोलबाग़ की व्यस्त सड़कों पर आपको रोज़ाना एक साधारण-सा ठेला नज़र आ जाएगा, जहाँ पर मेहनत और संघर्ष की कहानी हर अंडे और ब्रेड के साथ परोसी जाती है। यह ठेला किसी आम व्यक्ति का नहीं, बल्कि संतोष कुमार का है, जिसे लोग मोहब्बत से “अंडा वाला” कहकर पुकारते हैं।
संतोष बीते 15 सालों से अपने पिता की जगह यह काम संभाल रहे हैं। पिता के निधन के बाद उन्होंने हार मानने के बजाय जिम्मेदारी उठाई और उसी लगन से लोगों को अंडा और ब्रेड खिलाना शुरू किया। आज करोलबाग़ के आसपास रहने वाले और यहाँ से गुजरने वाले लोग उनके स्वादिष्ट और सस्ते अंडा-डिश के कायल हैं।
मेहनत से जीता दिल
संतोष सुबह से देर रात तक अपने ठेले पर ग्राहकों की सेवा करते हैं। उनके हाथों का बना ऑमलेट और ब्रेड का स्वाद इतना खास है कि लोग दूर-दूर से यहाँ आते हैं। ग्राहक कहते हैं – “संतोष का अंडा सिर्फ पेट ही नहीं भरता, बल्कि उनकी मेहनत और ईमानदारी का स्वाद भी उसमें झलकता है।”
युवा मेहनतकश की मिसाल
आज जब कई युवा आसान रास्ता चुनते हैं, वहीं संतोष ने संघर्ष और पसीने से अपनी पहचान बनाई है। उनकी यह मेहनत न केवल रोज़गार का साधन है बल्कि समाज को यह संदेश भी देती है कि “मेहनत से बढ़कर कोई रोज़गार नहीं।”
हमारी अपील
अगर आप कभी करोलबाग़ आएँ, तो संतोष कुमार के ठेले पर ज़रूर रुकें और उनके हाथ का बना अंडा और ब्रेड खाकर देखें। यह सिर्फ स्वाद का अनुभव नहीं होगा, बल्कि एक युवा की मेहनत को सलाम भी होगा।
Author: Noida Desk
मुख्य संपादक (Editor in Chief)








