“तेजप्रताप यादव ने थामा वीवीआईपी का दामन! बिहार की राजनीति में बड़ा उलटफेर, अब RJD-VVIP का नया समीकरण?”

 

भूमिका: बिहार की राजनीति हमेशा से जातिगत समीकरणों, सामाजिक न्याय और राजनीतिक बंटवारे के इर्द-गिर्द घूमती रही है। इसी कड़ी में अब एक नया अध्याय जुड़ गया है – वीआईपी (विकासशील इंसान पार्टी) से टूटकर वीवीआईपी (विकास वंचित इंसान पार्टी) का निर्माण। जहां एक ओर मुकेश सहनी अपनी राजनीतिक विरासत और निषाद समाज की प्रतिनिधि शक्ति के रूप में खुद को स्थापित करने में लगे हैं, वहीं दूसरी ओर प्रदीप निषाद ने नई पार्टी बनाकर सत्ता और राजनीति में अपनी स्वतंत्र पहचान बनाने का ऐलान कर दिया है। यह रिपोर्ट इसी घटनाक्रम की गहराई में जाकर इसकी पृष्ठभूमि, प्रभाव, दलों की रणनीति, जनता की राय, और आगामी विधानसभा चुनाव पर पड़ने वाले प्रभाव को विस्तार से बताती है।

विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) की स्थापना 2018 में मुकेश सहनी ने की थी। सहनी एक समय बॉलीवुड के सेट डिजाइनर थे, लेकिन बिहार में निषाद समाज के प्रतिनिधि के रूप में उभरे। उन्होंने सामाजिक न्याय की लड़ाई को राजनीतिक मंच पर लाने का दावा किया और 2020 के विधानसभा चुनाव में एनडीए गठबंधन का हिस्सा बनकर 4 सीटें जीती थीं। हालांकि, बाद में वे एनडीए से अलग होकर महागठबंधन में शामिल हो गए।

वीवीआईपी पार्टी का जन्म

28 जून 2025 को पटना में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में प्रदीप निषाद ने वीवीआईपी (विकास वंचित इंसान पार्टी) के गठन की घोषणा की। प्रदीप कभी वीआईपी पार्टी के सक्रिय सदस्य रहे थे, लेकिन उन्होंने पार्टी के कार्यशैली और नेतृत्व को लेकर नाराजगी जताई। उनका आरोप है कि वीआईपी पार्टी पूरी तरह से परिवारवाद से ग्रसित है, और निषाद समाज की आवाज वहां दबा दी गई है। उन्होंने कहा कि अब वक्त आ गया है जब वंचितों, दलितों, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों के लिए एक नई राजनीतिक धारा शुरू की जाए।

आरोप और पलटवार: वीआईपी बनाम वीवीआईपी

प्रदीप निषाद के आरोप:

वीआईपी पार्टी में सभी फैसले मुकेश सहनी और उनके परिवार के बीच होते हैं।

पार्टी के कार्यकर्ता उपेक्षित महसूस कर रहे थे।

निषाद समाज को असल प्रतिनिधित्व नहीं मिला।

वीआईपी का पलटवार:

पार्टी प्रवक्ता ने इसे “राजनीतिक अवसरवादिता” बताया।

कहा गया कि प्रदीप निषाद को पार्टी में उचित स्थान दिया गया था, लेकिन निजी महत्वाकांक्षा के कारण उन्होंने बगावत की।

मुकेश सहनी ने दावा किया कि वीआईपी ही असली निषाद समाज की पार्टी है और जनता उन्हें ही समर्थन देगी।

वीवीआईपी की रणनीति और जनसंपर्क अभियान

प्रदीप निषाद ने साफ कहा है कि वे किसी भी गठबंधन का हिस्सा नहीं बनेंगे। उन्होंने कहा कि वीवीआईपी अकेले चुनाव लड़ेगी और अधिकतर सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेगी। पार्टी का लक्ष्य है:

वंचितों और सामाजिक रूप से पिछड़े वर्गों को राजनीति में सम्मानजनक भागीदारी दिलाना।

निषाद समाज को OBC में आरक्षण सुनिश्चित कराना।

अल्पसंख्यकों की सुरक्षा और शिक्षा पर विशेष ध्यान देना।

कार्यक्रम और रैलियाँ: वीवीआईपी ने राज्य भर में “सामाजिक न्याय यात्रा” की शुरुआत की है, जिसमें जनता से संवाद किया जा रहा है। गांव-गांव जाकर प्रदीप निषाद और उनके कार्यकर्ता लोगों से सीधा संपर्क कर रहे हैं।

वीआईपी की प्रतिक्रिया और सीटों की मांग

महागठबंधन का हिस्सा बनी वीआईपी ने इस बार विधानसभा चुनाव में 60 सीटों पर दावा ठोका है। सहनी ने तेजस्वी यादव के साथ कई बैठकें की हैं और दोनों नेताओं के बीच सीटों को लेकर गहन बातचीत चल रही है। पार्टी ने कई जिलों में कार्यकर्ता सम्मेलन और ‘शक्ति प्रदर्शन’ कार्यक्रम आयोजित किए हैं।

महत्वपूर्ण

निषाद समाज के लिए आरक्षण को आंदोलनात्मक रूप से उठाने का संकल्प।निषाद समाज के बच्चों की शिक्षा, महिलाओं की सुरक्षा और सरकारी नौकरियों में प्रतिनिधित्व पर जोर।

निषाद समाज में भ्रम और बंटवारा

 

वीआईपी और वीवीआईपी के इस टकराव से निषाद समाज के वोटरों में भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो गई है। कई लोग मुकेश सहनी को “पारंपरिक नेता” मानते हैं, जबकि कुछ प्रदीप निषाद को “नई सोच और युवा नेतृत्व” का प्रतीक मानते हैं। इस बंटवारे से निषाद समाज का वोट बैंक दो हिस्सों में बंट सकता है, जिसका सीधा लाभ अन्य दलों को हो सकता है।

सामाजिक समीकरणों पर असर

निषाद समाज बिहार में लगभग 4-6% जनसंख्या में आता है। उत्तर बिहार के कई जिलों में इनका अच्छा प्रभाव है। वीआईपी और वीवीआईपी दोनों इस समाज के आधार पर अपने को मजबूत करने की कोशिश में हैं। लेकिन उनके अलग-अलग रास्तों पर चलने से सामाजिक समीकरण प्रभावित हो सकते हैं।

विपक्ष और अन्य दलों की प्रतिक्रिया

राजद: तेजस्वी यादव फिलहाल मुकेश सहनी के साथ खड़े हैं लेकिन वीवीआईपी के उदय को लेकर वे सतर्क भी हैं।

भाजपा: भाजपा इस बंटवारे को अवसर के रूप में देख रही है। सूत्रों की मानें तो पार्टी वीवीआईपी के साथ कुछ सीटों पर गुप्त समझौता कर सकती है।

जेडीयू: जेडीयू इस पूरे घटनाक्रम से दूरी बनाए हुए है लेकिन नीतीश कुमार की निगाहें हर एक क्षेत्रीय दल की गतिविधियों पर हैं।

चुनाव आयोग में पंजीकरण और चिन्ह

वीवीआईपी ने चुनाव आयोग में अपनी पार्टी को पंजीकृत कराने के लिए आवेदन कर दिया है और एक नाव या मछली जैसे प्रतीक की मांग की है, जो निषाद समाज से जुड़ाव को दर्शाता है। वीआईपी पहले ही नाव के चिन्ह का इस्तेमाल करती रही है। ऐसे में चिन्ह को लेकर भी विवाद बढ़ सकता है।

सोशल मीडिया पर प्रतिक्रिया

वीआईपी और वीवीआईपी के कार्यकर्ता सोशल मीडिया पर एक-दूसरे के खिलाफ अभियान चला रहे हैं। एक ओर जहां मुकेश सहनी को “विकास पुरुष” बताया जा रहा है, वहीं प्रदीप निषाद को “साहसी युवा चेहरा” के रूप में प्रचारित किया जा रहा है। ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम पर हैशटैग ट्रेंड भी किए गए हैं:

मीडिया में इस विवाद को व्यापक कवरेज मिल रहा है। कई चैनलों ने डिबेट आयोजित की, जिसमें दोनों पक्षों के प्रवक्ताओं ने भाग लिया। कुछ चैनलों ने इसे “निषाद समाज का बंटवारा” बताया, तो कुछ ने इसे “लोकतंत्र का उत्सव” कहा और भविष्य की राह

बिहार की राजनीति में वीआईपी और वीवीआईपी के बीच की यह लड़ाई सिर्फ राजनीतिक नहीं, सामाजिक प्रतिनिधित्व की भी लड़ाई है। जहां एक ओर यह निषाद समाज के लिए दो विकल्प देता है, वहीं इससे वोटों का बिखराव भी हो सकता है। चुनावों में यह देखना दिलचस्प होगा कि जनता किसे असली प्रतिनिधि मानती है – अनुभवी मुकेश सहनी को या नए जोश से भरे प्रदीप निषाद को।

संभावित असर:

अगर वीवीआईपी को ग्रामीण क्षेत्रों में समर्थन मिला, तो वीआईपी को नुकसान हो सकता है।

वीआईपी अगर महागठबंधन के साथ मजबूती से खड़ी रहती है, तो उनकी राजनीतिक पकड़ बरकरार रह सकती है।

निषाद समाज के वोटों के विभाजन का लाभ भाजपा, जदयू और अन्य दलों को मिल सकता है।

 

Bihar Desk
Author: Bihar Desk

मुख्य संपादक (Editor in Chief)

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