तेजस्वी यादव की पारस निवास पर मुलाकात ने बदली बिहार की राजनीति

| स्थान: पटना, बिहार | एशियन टाइम्स विशेष रिपोर्ट

मिठाई के बहाने बड़ी राजनीति की चाल

6 जुलाई 2025 की शाम, जब बिहार की राजधानी पटना में मौसम हल्का उमस भरा था, तब बिहार की राजनीति में गर्मी बढ़ाने वाला एक दृश्य सामने आया।

राजद नेता और पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव, जो हाल के दिनों में जनता के बीच ज्यादा सक्रिय नज़र आ रहे हैं, अचानक लोक जनशक्ति पार्टी (राष्ट्रवादी) के प्रमुख पशुपति कुमार पारस के आवास पर पहुंच गए। उनके हाथ में एक मिठाई का डिब्बा था, पर अंदर छुपी थी एक राजनीतिक मिठास, जिसके असर अब बिहार की सत्ता समीकरणों पर साफ़ दिखने लगे हैं।

यह मुलाकात सामान्य नहीं थी। ऐसे समय में जब विपक्ष एकजुटता की कवायद में लगा है और एनडीए गठबंधन अंदरूनी खींचतान से जूझ रहा है, तेजस्वी यादव का अचानक पारस निवास पहुंचना सिर्फ ‘मिठाई देना’ नहीं था — यह बिहार की राजनीति में एक संभावित बड़े समीकरण की घोषणा थी।

 रामविलास पासवान की विरासत का सम्मान या राजनीतिक दांव?

तेजस्वी यादव ने मुलाकात के दौरान स्पष्ट रूप से कहा कि वे स्व. रामविलास पासवान जी को श्रद्धांजलि देने और उनके छोटे भाई से संवाद के लिए आए हैं।

उन्होंने कहा:

“रामविलास जी का बिहार की राजनीति में बड़ा योगदान रहा है। वे दलितों की सशक्त आवाज थे। उनकी विरासत को मिलकर आगे बढ़ाना हम सभी की जिम्मेदारी है।”

लेकिन क्या यह बयान सिर्फ श्रद्धांजलि था? या इसके पीछे कोई गहरी राजनीतिक रणनीति छिपी थी?

तेजस्वी की योजना: दलित-पिछड़ा-मुस्लिम गठजोड़ को और मजबूत करना

तेजस्वी यादव की राजनीति शुरुआत से ही सामाजिक न्याय की बुनियाद पर टिकी रही है। उन्होंने हमेशा दलितों, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों के हक में बात की है। अब जब 2025 विधानसभा चुनाव नज़दीक हैं, वे उस “सामाजिक इंजीनियरिंग” को और धार देना चाहते हैं।

पशुपति पारस का समर्थन उन्हें दो बड़ी ताकतें देगा:

  1. दलित समुदाय में सीधी पैठ
  2. रामविलास पासवान की राजनीतिक विरासत का नैतिक समर्थन

क्या यह गठबंधन बन पाएगा? पारस गुट की भूमिका अहम

राजनीतिक गलियारों में चर्चा तेज़ है कि तेजस्वी यादव की यह मुलाकात महज औपचारिकता नहीं, बल्कि पारस गुट को महागठबंधन में शामिल करने की तैयारी है।

अगर ऐसा होता है, तो यह सीटों के बंटवारे से लेकर मुख्यमंत्री उम्मीदवार की दावेदारी तक, कई स्तरों पर असर डालेगा।

पारस की प्रतिक्रिया: दरवाज़ा खुला, लेकिन घोषणा नहीं

पशुपति पारस ने मीडिया से बात करते हुए कहा:

“हमारा परिवार और तेजस्वी जी का परिवार वर्षों से जुड़ा है। वे घर आए, यह सम्मान की बात है। राजनीति में सब संभव है, जो जनता के हित में हो, वही करेंगे।”

यह बयान न समर्थन है, न इंकार। लेकिन संकेत स्पष्ट हैं — बातचीत आगे बढ़ सकती है।

चिराग पासवान की परेशानी बढ़ी?

LJP (रामविलास) के प्रमुख चिराग पासवान, जो खुद को रामविलास जी की राजनीतिक विरासत का असली उत्तराधिकारी मानते हैं, इस पूरे घटनाक्रम से असहज महसूस कर सकते हैं।

अगर पारस गुट महागठबंधन के साथ जुड़ता है, तो:

  • चिराग की स्थिति एनडीए में कमजोर होगी।
  • दलित मतदाता दो हिस्सों में बंट सकते हैं।
  • तेजस्वी को एक नैतिक बढ़त मिल सकती है।

विपक्ष और सत्ता पक्ष की प्रतिक्रिया

भाजपा ने इसे “तेजस्वी की नौटंकी” बताया है। भाजपा प्रवक्ता निखिल आनंद ने कहा:

“बिहार की जनता अब जातिवादी राजनीति से ऊब चुकी है। तेजस्वी सिर्फ दिखावे के लिए ये सब कर रहे हैं।”वहीं, जदयू ने इसे ‘अराजक गठबंधन की कोशिश’ बताया।

राजद के प्रवक्ता मनोज झा ने इसका जवाब देते हुए कहा:

“हम सिर्फ लोगों को जोड़ने की राजनीति करते हैं। अगर पारस जी भी इस सोच से जुड़ते हैं, तो यह बिहार के लिए शुभ संकेत होगा।”

 सामाजिक समीकरण: वोटरों पर असर

अगर यह समीकरण बना, तो राजद को 2025 में स्पष्ट बहुमत तक पहुंचाने में मदद मिल सकती है।

 राजनीतिक विश्लेषकों की राय

प्रो. संजय कुमार, सीएसडीएस (CSDS) कहते हैं:

“बिहार में गठबंधन सिर्फ वोट नहीं, धारणा भी तय करता है। तेजस्वी अगर पारस को साथ जोड़ने में सफल होते हैं, तो यह उन्हें नैतिक और सामाजिक रूप से ऊंचा स्थान देगा।”

राजनीतिक विश्लेषक प्रफुल्ल श्रीवास्तव का कहना है:

“यह सिर्फ एक मिठाई नहीं, बिहार की राजनीति में एक ‘मीठा संकेत’ है, जिसकी कड़वाहट विपक्ष को झेलनी पड़ सकती है।”

Bihar की राजनीति में एक नया अध्याय शुरू?

तेजस्वी यादव की इस पहल ने साबित कर दिया है कि वे न केवल विपक्ष के नेता हैं, बल्कि राजनीति के चतुर खिलाड़ी भी हैं। वे जानते हैं कि कब, कहाँ और कैसे कौन-सी चाल चलनी है।

अब देखना यह है कि पारस कब तक मौन रहते हैं, और क्या चिराग पासवान इस राजनीतिक मिठास को कड़वे घूंट के रूप में लेंगे, या इसका तोड़ निकालेंगे?

एक बात तय है — बिहार का सियासी रण फिर से गर्म हो गया है।

 

Bihar Desk
Author: Bihar Desk

मुख्य संपादक (Editor in Chief)

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