Arunachal Pradesh
: एक सप्ताह बाद भी कामेंग नदी का पानी है काला, हिमस्खलन की जताई जा रही आशंका
;एक सप्ताह के बाद भी अरुणाचल प्रदेश के पूर्वी कामेंग जिले में ब्रह्मपुत्र नदी की एक प्रमुख सहायक कामेंग नदी का पानी काला, मैला और उपयोग के लिए अनुपयुक्त बना हुआ है. यह जानकारी अधिकारियों ने दी है. पूर्वी कामेंग जिले के डीसी प्रिवमल अभिषेक पोलुमतला ने कहा है कि सैटेलाइट इमेजरी ने संभावित कारण के रूप में नदी के ऊपरी इलाकों में किसी प्रकार के भूस्खलन/हिमस्खलन का संकेत मिला है, जबकि हमारे पास अभी पूरी तस्वीर नहीं है. नदी की स्थिति एक संकटपूर्ण है और इसे फिर से जीवंत करने के लिए समय की आवश्यकता होगी.
नदी के पानी के रंग बदलने की सूचना सबसे पहले 29 अक्टूबर को मिली थी, जब स्थानीय लोगों ने सेप्पा शहर के पास पानी में बड़ी संख्या में मरी हुई मछलियां तैरती हुई पाईं थीं, जोकि बिल्कुल काली पड़ गई थीं. राज्य के सार्वजनिक स्वास्थ्य इंजीनियरिंग विभाग ने परीक्षण किया और पाया कि पानी में उच्च स्तर का मैलापन है. पोलुमतला ने कहा बताया कि विभाग की जल विश्लेषण रिपोर्ट के अनुसार, मैलापन का स्तर 1,290 और 1,380 नेफेलोमेट्रिक टर्बिडिटी यूनिट (एनटीयू) है, जोकि 5 एनटीयू की परमिशिबल लिमिट से काफी अधिक है. दूसरी ओर घुलित ऑक्सीजन का स्तर घटकर 2 मिलीग्राम/लीटर हो गया है, जो स्वीकार्य स्तर 8-10 मिलीग्राम/लीटर से कम है.
उन्होंने कहा कि ऑक्सीजन के स्तर में कमी के कारण शुरू में हजारों मछलियों की मौत हुई थी और कई अन्य सहायक नदियों में बह गई हैं. कामेंग नदी (असम में जिया भोरेली कहा जाता है) कई लोगों के लिए एक जीवन रेखा है और इसका स्रोत न्येगी कांगसांग के पास एक हिमनद झील में है, जोकि अरुणाचल प्रदेश के सबसे ऊंचे पहाड़ों में से एक है. हालांकि विशेषज्ञ इस बात से सहमत हैं कि एक संभावित हिमस्खलन था जिसके कारण पानी में ज्यादा मैलापन हुआ, वे अभी भी यह निर्धारित करने की कोशिश कर रहे हैं कि यह कहां हुआ और किस कारण से हुआ.
‘असम सरकार कई एजेंसियों के संपर्क में
जिला प्रशासन ने शुक्रवार को नदी का हवाई सर्वेक्षण किया और पाया कि खेनेवा सर्कल में नदी के ऊपर की ओर की सहायक नदी वारियांग बंग के साथ तीव्र कटाव हो रहा था, जिसके कारण कीचड़, मलबा, बोल्डर और पेड़ जमा हो गए थे, जिन्हें नदी नीचे की ओर ले गई. हालांकि अभी यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि भूस्खलन कहां हुआ. राज्य सरकार इस मसले की निगरानी के लिए ईटानगर में स्टेट रिमोट सेंसिंग एप्लीकेशन सेंटर, शिलांग में उत्तर पूर्वी अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन और केंद्रीय जल आयोग के साथ-साथ स्वतंत्र शोधकर्ताओं सहित कई एजेंसियों के संपर्क में है.