फुलवारी शरीफ (पटना), नौसा गांव – बिहार में ज़मीन से जुड़ी धोखाधड़ी के मामलों में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है, और इन मामलों में ज़मीन माफियाओं की संलिप्तता देखी जा रही है। एक ऐसा ही मामला सामने आया है जिसमें वरिष्ठ पत्रकार श्री तनवीर आलम, जो वर्ष 2010 से ही इस लड़ाई को न्यायालय में लड़ रहे हैं, उन्हें गलत तरीके से फंसाने की कोशिश की जा रही है।
पत्रकार तनवीर आलम का मामला
श्री तनवीर आलम का कहना है कि यह ज़मीन उनके परिवार की पुश्तैनी संपत्ति है, जिसकी पहली सर्वे 1907 में हुई थी। लेकिन ज़मीन माफिया और कुछ स्थानीय कर्मियों की मिलीभगत से फर्जी रजिस्ट्री डीड (Sale Deed 2) बनाई गई है, जिसमें कोई वैधता नहीं है — न तो यह थाने में प्रमाणित है, न ही कोर्ट में इसकी सत्यापित कॉपी पेश की गई है।
इन लोगों की साजिश है कि पहले ज़मीन का फर्जी एग्रीमेंट बनाएं, फिर किसी तथाकथित इंजीनियर और कर्मचारियों की मिलीभगत से फर्जी कागजात तैयार करें। इसके बाद थाने में झूठा केस करवा कर असली मालिक को ही अपराधी साबित करने की कोशिश करें।
ज़मीन माफियाओं की कार्यप्रणाली
लैंड माफिया गैंग
बिहार में कुछ बेरोजगार लोगों ने अपने गिरोह बना लिए हैं, जो नौकरी की कमी में अपराध का रास्ता पकड़ चुके हैं। ये लोग पहले ज़मीन का फर्जी एग्रीमेंट बनाते हैं, फिर फर्जी दस्तावेज तैयार कर थाने में झूठा केस दर्ज करवाते हैं। इस प्रक्रिया में कुछ स्थानीय कर्मियों और पुलिस की मिलीभगत भी होती है।
सोशल मीडिया पर सक्रिय कुछ कथित पत्रकार, सच्चाई से ज़्यादा एक पक्षीय प्रचार में लगे हैं
स्थानीय इलाकों में ज़मीन विवादों को लेकर कई गंभीर मामले सामने आ रहे हैं, लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि कुछ सोशल मीडिया पत्रकार बिना किसी तथ्य-जांच के केवल एक पक्ष की बात को बढ़ा-चढ़ा कर जनता के सामने परोस रहे हैं।
जानकारों का कहना है कि यह मीडिया का दायित्व होता है कि दोनों पक्षों की बात निष्पक्ष रूप से सामने लाई जाए, लेकिन हाल के मामलों में देखा गया है कि कुछ यूट्यूब चैनल और सोशल मीडिया पेज, तथाकथित ‘पत्रकारिता’ की आड़ में एकतरफा खबरें चला रहे हैं।
इससे न सिर्फ आम जनता गुमराह होती है, बल्कि निर्दोष लोग बदनाम भी हो जाते हैं।
सूत्रों की मानें तो कई ऐसे चैनलों को किसी खास गुट का समर्थन भी प्राप्त है, जो जमीन विवाद से जुड़े सरगनाओं के पक्ष में माहौल बनाने की कोशिश कर रहे हैं।
सवाल उठता है: क्या ये पत्रकार सच में पत्रकार हैं, या किसी गिरोह के डिजिटल प्रवक्ता?
क्या TRP और फॉलोवर्स की लालच में ये लोग अपनी नैतिक जिम्मेदारी भूल चुके हैं?
पत्रकारिता अगर निष्पक्ष नहीं है, तो वह लोकतंत्र के लिए ज़हर बन जाती है।
सतर्कता के उपाय
•अगर आपके पास ज़मीन है तो उसके दस्तावेज सुरक्षित रखें।
•रजिस्ट्री, खतियान, खेसरा, दाखिल-खारिज आदि की अपडेटेड कॉपी बनवाएं।
•अगर कोई फर्जीवाड़ा हो रहा है तो तुरंत थाना, CO ऑफिस और कोर्ट में शिकायत करें।
•हर किसी पर आंख मूंदकर विश्वास न करें – चाहे वह पुलिस हो या किसी विभाग का कर्मी।
बिहार में पत्रकार, समाजसेवी, या आम नागरिक – कोई भी इन ज़मीन माफियाओं की साजिश से अछूता नहीं है। लेकिन अगर हम सच के साथ खड़े हों और सिस्टम पर विश्वास रखें, तो न्याय जरूर मिलेगा।
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