मुखिया और वार्ड पार्षदों से पूछिए – जनता का पैसा कहाँ खर्च हो रहा है?

गांव-नगर की जमीनी हकीकत उजागर करती रिपोर्ट


बिहार, उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों के ग्रामीण और शहरी इलाकों में एक सवाल आज आम जनता के मन में गूंज रहा है – “जनता का पैसा आखिर जाता कहाँ है?”

मुखिया हो या वार्ड पार्षद, हर साल सरकार की ओर से लाखों-करोड़ों की योजनाएं आती हैं – मनरेगा, प्रधानमंत्री आवास योजना, नल-जल योजना, सड़क निर्माण, नाली सफाई, रोशनी व्यवस्था जैसी दर्जनों योजनाएं। लेकिन गांव की गलियां टूटी हैं, सड़कें दलदल में तब्दील, नाली बजबजा रही, और सार्वजनिक सुविधाएं ठप हैं।

तो सवाल उठता है – इन योजनाओं का पैसा आखिर गया कहाँ?

क्या आपने कभी अपने वार्ड पार्षद या मुखिया से पूछा कि पिछले 1 साल में कितना फंड आया और वो कहाँ खर्च हुआ?

क्या कभी कोई जन सुनवाई हुई जिसमें बताया गया हो कि कितने लोगों को प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ मिला?

नल-जल योजना के नाम पर जो टंकी लगी, वो अब भी सूखी क्यों पड़ी है?

सड़कें कागज़ पर बन रही हैं, हकीकत में मिट्टी तक नहीं डाली गई। रोड मरम्मत का बजट आया था, पर सड़कें आज भी गड्ढों से भरी पड़ी हैं।

सबसे बड़ा सवाल:

मुखिया और वार्ड पार्षद की आय उनकी सरकारी सैलरी से कहीं ज्यादा कैसे?

  • चुनाव से पहले साइकिल से चलने वाले नेता आज SUV में घूमते हैं। जिनके पास कोई निजी संपत्ति नहीं थी, आज वे गाँव के “बड़े आदमी” बन चुके हैं।आखिर ये संपत्ति कहाँ से आई?

ये सवाल अब सिर्फ विपक्ष या पत्रकार नहीं, हर आम आदमी का हक है पूछना।

अगर आप चुप हैं, तो भ्रष्टाचार बढ़ेगा। अगर आप सवाल करेंगे, तो जवाबदारी तय होगी।

Asian Times की अपील:

गांव-शहर की सरकार आपसे बनी है। जवाब मांगिए, RTI लगाइए, जनप्रतिनिधियों को जवाबदेह बनाइए। एक पंचायत या वार्ड का विकास तब ही होगा जब जनता जागेगी।

अपने गाँव या वार्ड की टूटी सड़कें, गंदगी, अधूरे काम की तस्वीरें हमें भेजिए – हम उसे उठाएंगे आपकी आवाज़ बनकर।

 

 

Noida Desk
Author: Noida Desk

मुख्य संपादक (Editor in Chief)

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