बिहार में अपराध बेलगाम: अपराधियों को न सरकार का डर, न कानून का खौफ
रिपोर्ट: तनवीर आलम शेख | Asian Times विशेष रिपोर्ट
जब डर का नाम बिहार था, अब डर खुद ही गायब है
कभी बिहार की सड़कों पर पुलिस की गाड़ी की आवाज सुनकर लोग सहम जाते थे। अब न तो अपराधियों को पुलिस का डर रहा, न ही सरकार या सिस्टम का कोई खौफ। ऐसा लगता है मानो अपराध एक आम दिनचर्या बन गया हो। चाहे राजधानी पटना हो या किसी ग्रामीण इलाका — हर कोने से रोज़ाना मर्डर, लूट, रेप, फिरौती और गोलीबारी की खबरें आ रही हैं।
यह कैसी शासन व्यवस्था है जहां सरकार हाईटेक जेल बना रही है, एनकाउंटर करवा रही है, मगर फिर भी अपराधियों के हौसले आसमान पर हैं? क्या वाकई बिहार में “सुशासन” बचा है?
पटना: राजधानी या अपराध की राजधानी?
पटना कभी शांति और शिक्षा का केंद्र माना जाता था। आज वही शहर डर का पर्याय बन गया है। बीते कुछ हफ्तों में ही पटना में दर्जनों हत्याएं, रेप और लूट की घटनाएं दर्ज हुई हैं।
हाल ही में, सिंह ट्रैवल्स के एक बस खलासी को दिनदहाड़े गोली मार दी गई, अपराधी आराम से भाग निकले और पुलिस सिर्फ सीसीटीवी फुटेज देखने तक सिमट गई।
पिछले साल दिसंबर में, एक एंबुलेंस ड्राइवर की गोली मारकर हत्या कर दी गई, और पुलिस आज तक असली कारण तक नहीं पहुंच पाई।
इन घटनाओं ने आम नागरिक के मन में एक ही बात बैठा दी है — बिहार में अब पुलिस का नहीं, अपराधियों का डर है।
IPS कुंदन कृष्णा और बिहार पुलिस: हौसले तो हैं, मगर परिणाम नहीं
IPS अधिकारी कुंदन कृष्णा एक ईमानदार और सक्रिय अफसर माने जाते हैं। उनके आने से उम्मीद थी कि सिस्टम में कुछ बदलाव आएगा, मगर हालात बता रहे हैं कि उनका इकबाल अपराधियों पर नहीं चला।
बिहार पुलिस हर घटना के बाद एक ही बयान देती है — “जांच जारी है”। मगर यह जांच कभी नतीजे तक नहीं पहुंचती।
क्या वजह है कि इतने संसाधनों, टेक्नोलॉजी और अधिकारियों की फौज के बावजूद बिहार अपराध मुक्त नहीं हो पा रहा?
हाइटेक जेलें, एनकाउंटर और ऑपरेशन — सब बेअसर?
नीतीश सरकार ने दावा किया था कि बिहार में हाईटेक जेलें बन रही हैं, CCTV नेटवर्क बढ़ाया गया है, और पुलिस को अत्याधुनिक हथियार दिए जा रहे हैं। मगर इन सबका असर सिर्फ कागज़ों तक सीमित है।
जब अपराधी दिनदहाड़े वारदात करके खुलेआम वीडियो बनवाते हैं और सोशल मीडिया पर अपलोड कर देते हैं, तो फिर ऐसी व्यवस्था का क्या औचित्य?
एनकाउंटर की बात करें तो कुछ सालों में बिहार में गिने-चुने एनकाउंटर हुए हैं, वो भी छोटे अपराधियों के। जबकि बड़े माफिया सरगना आज भी सत्ता की छांव में पल रहे हैं।
जनता की नजर में — अब सरकार नहीं, खुद की सुरक्षा ही अंतिम विकल्प
बिहार की जनता अब खुद को असहाय महसूस कर रही है। थानों में सुनवाई नहीं, FIR के नाम पर पैसे की मांग, और अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई में लेटलतीफी — इन सबने आम आदमी को हताश कर दिया है।
अब लोग पुलिस से नहीं, CCTV, बंदूक और निजी सुरक्षा गार्ड पर भरोसा कर रहे हैं।
अपराध का नेटवर्क: राजनैतिक संरक्षण और पुलिस की नाकामी
कई बड़े आपराधिक गिरोह को राजनैतिक संरक्षण प्राप्त है। चुनावों के समय ऐसे अपराधी नेताओं के करीबी बन जाते हैं, टिकट पाते हैं और फिर पूरे क्षेत्र पर हावी हो जाते हैं।
पुलिस जब इन पर हाथ डालने जाती है तो ऊपर से “ऑर्डर” आ जाता है — “ये ऊपर से दबाव है, छोड़ दो।”
ऐसे में बिहार की कानून व्यवस्था एक मज़ाक बनकर रह गई है।