रांची : झारखंड कर्मचारी चयन आयोग (जेएसएससी) की परीक्षा में अनिवार्य भाषाओं की सूची से हिंदी को बाहर करने संबंधी सरकार के फैसले के खिलाफ झारखंड उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका (पीआईएल) दाखिल की गई।
एकता विकास मंच द्वारा दिन में उच्च न्यायालय के समक्ष एक जनहित याचिका दाखिल की गई। अदालत ने अभी सुनवाई की तारीख नहीं दी है।
एक गैर-सरकारी संगठन एकता विकास मंच ने यह दावा करते हुए जनहित याचिका दाखिल की कि परीक्षा आयोजित करने के लिए सरकार द्वारा बनाए गए नियम मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हैं।
राज्य मंत्रिमंडल की एक बैठक में पांच अगस्त को इस प्रस्ताव को मंजूरी दी गई थी कि राज्य में नौकरी के इच्छुक उम्मीदवारों को स्थानीय संस्कृति, भाषा और परंपरा का ज्ञान होना चाहिए और उन्हें एक क्षेत्रीय या आदिवासी भाषा में कम से कम 30 प्रतिशत अंक प्राप्त करने चाहिए, जिसे मेरिट सूची तैयार करते समय अंकों में जोड़ा जाएगा।
एक सरकारी प्रवक्ता ने कहा था कि जहां तक अंग्रेजी और हिंदी का सवाल है, ये ‘क्वालिफाइंग पेपर’ होंगे और मेरिट सूची तैयार करते समय विषयों में प्राप्त अंकों को नहीं जोड़ा जाएगा।
यह निर्णय लिया गया कि अभ्यर्थी राज्य स्तरीय परीक्षा के लिए खारिया, हो, संथाली, खोरथा, पंचपरगनिया, बांग्ला, उर्दू, कुरमाली, नागपुरी, कुरुख और उड़िया भाषाओं में से किसी एक को चुन सकते हैं।
याचिका में कहा गया है कि हिंदी और अंग्रेजी को हटाने के सरकार के फैसले का असर उन भाषाओं में पारंगत अभ्यर्थियों पर पड़ेगा। इसमें कहा गया है कि इसके अलावा, झारखंड के ज्यादातर सरकारी स्कूलों में शिक्षा का माध्यम हिंदी है और इसे बाहर किया जाना योग्य अभ्यर्थियों को वंचित करेगा।