शीर्षक: चिराग पासवान की सियासत: प्रेशर पॉलिटिक्स या पारिवारिक द्वंद्व का खेल?
Asian Times ब्यूरो रिपोर्ट | पटना
बिहार की राजनीति में चिराग पासवान को लेकर चर्चाएं फिर तेज हो गई हैं। सवाल उठ रहे हैं कि क्या चिराग की राजनीति वाकई बिहार के विकास के लिए है या सिर्फ “प्रेशर पॉलिटिक्स” का हिस्सा बन चुकी है?
2020 में सहानुभूति लहर और ‘हनुमान’ का भ्रम
राजनीतिक विश्लेषकों और पार्टी से जुड़े लोगों का मानना है कि 2020 के विधानसभा चुनाव में चिराग पासवान को जो समर्थन मिला था, वह उनके पिता और दिग्गज नेता रामविलास पासवान के निधन की सहानुभूति के चलते था। उस समय पार्टी एकजुट थी और जनता के बीच यह धारणा बनाई गई कि चिराग, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘हनुमान’ हैं। इस छवि ने उन्हें चुनावी लाभ दिलाया, लेकिन अब उस ‘भ्रम’ की परतें धीरे-धीरे उतर रही हैं।
पारिवारिक लड़ाई और पासवान पहचान पर खतरा
रामविलास पासवान ने जिस मेहनत और रणनीति से decades में दलित समाज और खासकर पासवान समुदाय को एक राजनीतिक ताकत बनाया था, उसमें आज दरारें दिख रही हैं। उन्होंने चाचा पशुपति पारस, रामचर पासवान और अन्य सहयोगियों के साथ मिलकर दलित सेना और पार्टी की एक ठोस नींव रखी थी। दिल्ली से लेकर बिहार तक उनका एक सम्मानजनक राजनीतिक स्थान था, जिसे उन्होंने हर सरकार में संभाल कर रखा।
लेकिन चिराग पासवान की राजनीति ने इस एकता को बिखेर दिया है। परिवार में बंटवारा इस कदर गहराया कि आज कार्यकर्ता यह सोचने को मजबूर हैं कि वह “चाचा के साथ जाएं या भतीजे के साथ?”
राजनीतिक पूंजी पर कब्जा, लेकिन घर नहीं बचा पाए
चिराग ने चाचा पशुपति पारस से मंत्री पद और दिल्ली का सरकारी आवास तो छीन लिया, लेकिन यह सवाल अब खुलकर पूछा जा रहा है कि जो नेता अपने पिता की राजनीतिक विरासत और परिवार को नहीं बचा सके, वह बिहार की 13 करोड़ जनता को कैसे संभालेंगे?
रामविलास पासवान ने जो सरकारी आवास जीवनभर बचाकर रखा, उसकी गरिमा को चिराग बचा नहीं सके। यही कारण है कि अब पार्टी के पुराने कार्यकर्ता भी असमंजस में हैं और खुद को असहाय महसूस कर रहे हैं।
बिहार की जनता भ्रम में नहीं
बिहार की जनता अब पहले जैसी नहीं है। वह समझती है कि कौन राजनीति में स्थायित्व और विकास के लिए है और कौन सिर्फ पारिवारिक लड़ाई को राजनीतिक मंच बना रहा है। चिराग पासवान की मौजूदा रणनीति अगर परिवार में टूट और सत्ता की खींचतान तक सीमित रह गई, तो आने वाले समय में उनका राजनीतिक ग्राफ और नीचे जा सकता है।

Author: Bihar Desk
मुख्य संपादक (Editor in Chief)