🗓️ रिपोर्ट: | Asian Times
📍 स्थान: पटना, बिहार
पटना/PMCH: पत्रकार मनीष कश्यप एक बार फिर विवादों में घिर गए हैं। इस बार मामला पटना मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल (PMCH) का है, जहाँ SI (सब-इंस्पेक्टर) की बेटी, जो कि एक जूनियर डॉक्टर है, से कथित बदसलूकी और हंगामे का आरोप मनीष पर लगा है।
क्या हुआ PMCH में?
सूत्रों के अनुसार, मनीष कथित रूप से डॉक्टर कैम्पस में जबरन घुसकर एक महिला डॉक्टर से उलझ गए और उसे हॉस्टल की ओर ले जाने की कोशिश करने लगे। उसी समय थाना पीरबहोर की पुलिस मौके पर पहुंच गई और मनीष को किसी तरह भीड़ से निकालकर TOP में लाया गया।
करीब तीन घंटे तक मनीष और उनके समर्थक बेबस हालत में बैठे रहे। माहौल तब और बिगड़ा जब यह सामने आया कि मनीष जिससे उलझे थे, वह एक पुलिस इंस्पेक्टर की बेटी है। बाद में SI भी मौके पर पहुंच गए, जिससे हालात और तनावपूर्ण हो गए।
जूनियर डॉक्टरों का उग्र रूप
TOP परिसर के बाहर सैकड़ों की संख्या में जुटे जूनियर डॉक्टरों का गुस्सा साफ दिखा। मनीष को हॉस्टल में घसीटकर ले जाने, बांधने और मारपीट करने की मंशा खुलकर सामने आई। अगर पुलिस समय पर हस्तक्षेप नहीं करती, तो मामला गंभीर रूप ले सकता था।
डॉक्टरों से लिखित माफीनामा
तीन घंटे की भारी मशक्कत के बाद मनीष कश्यप घायल अवस्था में PMCH से बाहर निकले। उनके चेहरे पर चोट के स्पष्ट निशान थे। सूत्रों के अनुसार, उनसे लिखित माफीनामा लेकर उन्हें छोड़ा गया, और यह भी बताया जा रहा है कि BJP नेताओं की सिफारिश के बाद मनीष को छोड़ा गया।
महिला डॉक्टर से बदसलूकी के आरोप
PMCH के प्राचार्य डॉ. विद्यापति चौधरी ने बयान में कहा,
“मनीष कश्यप ने महिला डॉक्टर से बदसलूकी की थी।”
वहीं, ASP दीक्षा ने बताया कि फिलहाल किसी पक्ष से कोई शिकायत प्राप्त नहीं हुई है। शिकायत मिलने पर विधिसम्मत कार्रवाई की जाएगी।
पिछले विवाद भी चर्चा में
यह पहली बार नहीं है जब मनीष कश्यप विवादों में आए हैं। इससे पहले तमिलनाडु में बिहारी मजदूरों पर फर्जी वीडियो शेयर करने के मामले में उन पर EOU द्वारा FIR दर्ज की गई थी। गिरफ्तारी के डर से वे फरार रहे और अंततः 18 मार्च 2023 को सरेंडर किया।
जनता के मन में उठते सवाल:
- ❓ क्या सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों को इतना अधिकार है कि वे किसी को बंधक बना सकें?
- ❓ जब मामला पुलिस अधिकारी की बेटी से जुड़ा हो, तो पुलिस की निष्पक्षता कितनी बनी रह सकती है?
- ❓ क्या डॉक्टरों को सेवा भाव और संवेदनशीलता के लिए प्रशिक्षित किया जा रहा है, या वे सत्ता और सुरक्षा के घमंड में इंसानियत भूल चुके हैं?
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संपादकीय टिप्पणी
डॉक्टरों को “धरती का भगवान” कहा जाता है, लेकिन जब वे खुद किसी को पीटने, बंधक बनाने या अपमानित करने के मूड में हों — तो समाज कैसे उन पर भरोसा करे?
मनीष कश्यप के साथ जो हुआ, वह निंदनीय हो सकता है, लेकिन उससे भी अधिक दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि सरकारी अस्पतालों में न केवल मरीज, बल्कि अब पत्रकार भी असुरक्षित महसूस कर रहे हैं।
सरकार को चाहिए कि ऐसे मामलों पर निष्पक्ष जांच और सख्त कार्रवाई सुनिश्चित करे, ताकि अस्पताल सेवा का केंद्र बने, प्रताड़ना का नहीं।

Author: Bihar Desk
मुख्य संपादक (Editor in Chief)