तारीख: 24 जुलाई 2025
स्थान: बेंगलुरु, कर्नाटक
रिपोर्टर: एशियन टाइम्स संवाददाता
कर्नाटक हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय सुनाते हुए तीन मुस्लिम युवकों के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी (FIR) को रद्द कर दिया है। इन पर आरोप था कि उन्होंने एक हिंदू मंदिर परिसर में इस्लाम धर्म का प्रचार किया और इस्लामिक पर्चे बाँटे। हालांकि, न्यायालय ने माना कि यह कार्य धर्मांतरण की कोशिश नहीं माना जा सकता और इसमें कोई अपराध नहीं बनता।
मामला क्या था?
मामला बागलकोट जिले के जामखंडी शहर स्थित एक हिंदू मंदिर से जुड़ा है।
आरोप था कि तीन मुस्लिम युवकों ने मंदिर परिसर में इस्लामी शिक्षाओं से जुड़े पर्चे बांटे और मौखिक रूप से इस्लाम के सिद्धांतों की जानकारी दी।
शिकायत में दावा किया गया कि आरोपियों ने धर्मांतरण के लिए लोगों को उकसाया।
इसके आधार पर पुलिस ने इन युवकों के खिलाफ भारतीय न्याय संहिता (Bharatiya Nyaya Sanhita), 2023 की धारा 299, 351(2), और 3(5) के साथ-साथ कर्नाटक धार्मिक स्वतंत्रता संरक्षण अधिनियम, 2022 की धारा 5 के तहत प्राथमिकी दर्ज की थी।
हाईकोर्ट ने क्या कहा?
न्यायमूर्ति वेंकटेश नाइक टी की एकल पीठ ने सुनवाई के दौरान स्पष्ट किया:
“सिर्फ पर्चा बांटना या अपने धर्म के बारे में मौखिक रूप से जानकारी देना धर्मांतरण का प्रयास नहीं माना जा सकता जब तक कि उसमें बल, लालच, धोखा या अन्य अनुचित साधनों का प्रयोग न हो।”
कोर्ट की अहम टिप्पणियाँ:
कोई जबरदस्ती, लालच या धोखा नहीं दिखा गया।
प्रचार मात्र से यह सिद्ध नहीं होता कि किसी को धर्म बदलने के लिए मजबूर किया गया।
शिकायतकर्ता इस मामले में कानूनी रूप से सक्षम नहीं था क्योंकि वह कोई प्रत्यक्ष पीड़ित नहीं था।
धर्मांतरण कानून के तहत केवल वही व्यक्ति शिकायत कर सकता है, जो खुद या परिवार का कोई सदस्य प्रभावित हो।
क्या है कर्नाटक धार्मिक स्वतंत्रता कानून?
कर्नाटक प्रोटेक्शन ऑफ राइट टू फ्रीडम ऑफ रिलीजन एक्ट, 2022 के अनुसार:
बलपूर्वक, लालच देकर, या धोखा देकर धर्म परिवर्तन कराना अपराध है।
बिना सरकारी अनुमति के धार्मिक परिवर्तनों की सूचना अनिवार्य है।
लेकिन केवल किसी के धर्म पर बोलना, उसका प्रचार करना अपराध नहीं है जब तक कि उसमें उपर्युक्त तत्व न हों।
FIR क्यों रद्द हुई?
कोर्ट ने पाया कि:
आरोपियों ने किसी को व्यक्तिगत रूप से धर्म बदलने के लिए नहीं कहा।
न ही किसी ने उनके प्रचार से प्रभावित होकर धर्म बदला।
ऐसे में प्राथमिकी निराधार और अवैध थी, जिसे रद्द किया गया।
कानूनी और सामाजिक विश्लेषण
यह निर्णय संविधान के अनुच्छेद 25 – धार्मिक स्वतंत्रता – के दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण है।
यह स्पष्ट करता है कि भारत में:
धार्मिक प्रचार करना अपराध नहीं है,
लेकिन अगर कोई धर्म बदलवाने की कोशिश बलपूर्वक करता है, तभी उसे अपराध माना जाएगा।
राजनीतिक व सामाजिक प्रतिक्रिया
धार्मिक संगठन इस फैसले को लेकर मिश्रित प्रतिक्रिया दे रहे हैं।
कुछ हिंदू संगठन इसे मंदिर परिसर की गरिमा का उल्लंघन मान रहे हैं।
वहीं, मुस्लिम संगठनों ने कोर्ट के निर्णय का स्वागत किया और कहा कि यह “भारत के संविधान की धार्मिक स्वतंत्रता की जीत” है।
कानून विशेषज्ञों ने इसे “धार्मिक प्रचार और धर्मांतरण के बीच की कानूनी रेखा” स्पष्ट करने वाला फैसला बताया है।
🔗 स्रोत:
“अगर आप अपने धर्म का प्रचार कर रहे हैं, तब तक आप अपराधी नहीं माने जाएंगे जब तक आप किसी को मजबूर नहीं करते।” – कर्नाटक हाईकोर्ट

Author: Bihar Desk
मुख्य संपादक (Editor in Chief)