क्या पशुपति पारस मुस्लिम कार्ड खेलकर RJD के साथ जाने की तैयारी में हैं?

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क्या पशुपति पारस AIMIM के साथ भी जा सकते हैं?
अगर पशुपति पारस NDA से अलग होते हैं, तो उनके पास RJD के साथ जाने या AIMIM के साथ गठबंधन करने के विकल्प होंगे। AIMIM मुस्लिम और दलित वोटों को जोड़ने की कोशिश कर रही है, और पशुपति पारस इसके लिए उपयोगी हो सकते हैं।

बिहार की राजनीति में मुस्लिम वोट बैंक हमेशा से निर्णायक भूमिका निभाता रहा है। ऐसे में यह सवाल उठना लाजमी है कि क्या पशुपति पारस अब मुस्लिम कार्ड खेलकर महागठबंधन (RJD) के करीब जाने की कोशिश कर रहे हैं, ठीक वैसे ही जैसे रामविलास पासवान ने अपने समय में किया था? क्या वे RJD के मुस्लिम-यादव (MY) समीकरण का हिस्सा बनने की रणनीति बना रहे हैं? इस सवाल का जवाब तलाशने के लिए हमें बिहार की राजनीतिक स्थिति, पासवान समुदाय की रणनीति और मुस्लिम वोट बैंक के समीकरण को समझना होगा।
बिहार में मुस्लिम वोटों का महत्व

बिहार में मुस्लिम आबादी लगभग 17% है और कई विधानसभा और लोकसभा सीटों पर यह समुदाय निर्णायक भूमिका में रहता है।  मुस्लिम-यादव (MY) समीकरण: 1990 के दशक में लालू प्रसाद यादव ने यादव और मुस्लिम वोटों को जोड़कर एक मजबूत गठबंधन बनाया था, जिसने उन्हें लंबे समय तक सत्ता में बनाए रखा। NDA बनाम महागठबंधन: मुस्लिम मतदाता परंपरागत रूप से कांग्रेस और RJD के साथ रहे हैं, लेकिन हाल के वर्षों में कुछ इलाकों में AIMIM जैसी पार्टियों ने भी इसमें सेंध लगाई है।लेकिन सवाल यह है कि पशुपति पारस मुस्लिम वोटों को अपनी ओर कैसे खींच सकते हैं? रामविलास पासवान की मुस्लिम राजनीति रामविलास पासवान की पहचान एक दलित नेता के रूप में थी, लेकिन उन्होंने हमेशा मुस्लिम समुदाय से करीबी रिश्ता बनाए रखा।2005 में LJP ने कांग्रेस और RJD से हाथ मिलाया था। 2014 में भाजपा के साथ गए, लेकिन मुस्लिम मतदाताओं से दूरी नहीं बनाई।  2019 में भाजपा के सहयोगी रहे, लेकिन बयानबाजी में मुस्लिमों को नाराज करने से बचते रहे।क्या पशुपति पारस भी यही रणनीति अपना सकते हैं? पशुपति पारस और RJD के साथ संभावित गठबंधन हाल ही में कुछ राजनीतिक विश्लेषकों ने यह दावा किया है कि पशुपति पारस भाजपा से नाराज चल रहे हैं और महागठबंधन के नेताओं से उनकी नजदीकियां बढ़ रही हैं। अगर वे RJD के करीब आते हैं, तो इसका मतलब यह हो सकता है कि वे मुस्लिम कार्ड खेलने की कोशिश कर रहे हैं। इसके संकेत कई घटनाओं से मिलते हैं:  पशुपति पारस के बयान: उन्होंने हाल ही में भाजपा के प्रति अपनी नाराजगी जताई थी और कहा था कि “हमें सम्मान नहीं मिल रहा है।” तेजस्वी यादव के बयान: तेजस्वी ने भी कहा था कि “अगर कोई दलित नेता हमारे साथ आना चाहता है, तो हम उसका स्वागत करेंगे।”मुस्लिम समुदाय के कार्यक्रमों में भागीदारी: पशुपति पारस को कई बार मुस्लिम संगठनों के कार्यक्रमों में देखा गया है, जिससे अटकलें तेज हो गई हैं। क्या पशुपति पारस AIMIM के साथ भी जा सकते हैं? अगर पशुपति पारस NDA से अलग होते हैं, तो उनके पास RJD के साथ जाने या AIMIM के साथ गठबंधन करने के विकल्प होंगे। AIMIM मुस्लिम और दलित वोटों को जोड़ने की कोशिश कर रही है, और पशुपति पारस इसके लिए उपयोगी हो सकते हैं।क्या चिराग पासवान भी मुस्लिम वोटों पर नजर रख रहे हैं? चिराग पासवान अब तक पूरी तरह NDA के समर्थन में रहे हैं, लेकिन अगर भाजपा उन्हें नजरअंदाज करती है, तो वे भी RJD या कांग्रेस के साथ जा सकते हैं।चिराग ने मुस्लिम समुदाय को कभी नाराज नहीं किया। वे भी दलित-मुस्लिम गठबंधन की संभावनाएं तलाश सकते हैं।अगर पशुपति पारस NDA छोड़ते हैं, तो चिराग उनकी जगह ले सकते हैं। मुस्लिम कार्ड खेलने से किसे फायदा होगा? पशुपति पारस को फायदा: अगर वे RJD के साथ जाते हैं, तो उन्हें मुस्लिम वोटों का समर्थन मिल सकता है।दलित-मुस्लिम गठबंधन से वे अपनी नई पहचान बना सकते हैं।भाजपा की राजनीति से दूर होकर वे तेजस्वी के सहयोगी बन सकते हैं। चिराग पासवान को फायदा अगर चिराग NDA में रहते हैं और भाजपा उन्हें समर्थन देती है, तो वे पासवान वोटों को NDA के पक्ष में रख सकते हैं। अगर वे महागठबंधन में जाते हैं, तो उन्हें दलित और मुस्लिम वोटों का समर्थन मिल सकता है। BJP को नुकसान अगर पासवान परिवार NDA से अलग होता है, तो भाजपा को पासवान और मुस्लिम दोनों वोटों का नुकसान हो सकता है। बिहार में भाजपा की ताकत पहले ही जदयू के कारण कमजोर हुई है, और यह झटका और बड़ा हो सकता है।  पशुपति पारस मुस्लिम कार्ड खेलकर NDA छोड़ सकते हैं?इस सवाल का जवाब पूरी तरह से 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले के राजनीतिक समीकरणों पर निर्भर करता है। अगर भाजपा पशुपति पारस को उचित सम्मान नहीं देती, तो वे महागठबंधन की ओर जा सकते हैं अगर चिराग पासवान NDA में मजबूत होते हैं, तो वे मुस्लिम समुदाय को अपने पक्ष में लाने की कोशिश कर सकते हैं। अगर पासवान समुदाय बंट जाता है, तो भाजपा को नुकसान और महागठबंधन को फायदा होगा। अब देखना यह होगा कि पशुपति पारस रामविलास पासवान की रणनीति अपनाकर मुस्लिम कार्ड खेलते हैं या फिर भाजपा में ही बने रहते हैं।

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