डिस्ट्रिक्ट कोर्ट ने उपहार कांड के दोषी सुशील और गोपाल अंसल को रिहा करने का आदेश दिया अंसल बंधु मजिस्ट्रेट कोर्ट के आदेश पर 8 नवंबर 2021 से जेल की सलाखों के पीछे थे मजिस्ट्रेट कोर्ट ने उन्हें उपहार मामले में सबूतों के साथ छेड़छाड़ का दोषी पाया था
दिल्ली: साल 1997 में हुए दिल्ली के विभत्स उपहार कांड के दोषी सुशील अंसल और गोपाल अंसल को डिस्ट्रिक्ट कोर्ट ने सजा पूरी होने पहले रिहा करने का आदेश दिया है। कोर्ट ने मंगलवार को यह आदेश उस मामले में दिया, जिसमें वो उपहार मामले में सबूतों के साथ छेड़छाड़ के मामले में दोषी पाये गये थे और मजिस्ट्रेट कोर्ट के आदेश पर 8 नवंबर 2021 से जेल की सलाखों के पीछे थे।
डिस्ट्रिक्ट कोर्ट के जज धर्मेश शर्मा ने अपने आदेश में कहा कि उपहार पीड़ित नहीं चाहते कि अंसल बंधु जेल से बाहर निकले। वो चाहते हैं कि दोषियों का शेष जीवन जेल में गुजरे लेकिन इस आपराधिक मुकदमे को अभियोजन पक्ष द्वारा पेश किये गये दलील के आधार पर फैसला दिया जाएगा न कि अपीलकर्ताओं के प्रति प्रतिशोधी भावनाओं से कोर्ट प्रभावित होगा।
अंसल बंधुओं की मिली मजिस्ट्रेट कोर्ट की सजा के आदेश को संशोधित करते हुए डिस्ट्रिक्ट न्यायाधीश धर्मेश शर्मा ने कहा कि चूंकि कोर्ट उपहार के पूर्व कर्मचारी दिनेश चंद शर्मा और अंसल के तत्कालीन स्टॉफ पीपी बत्रा को पहले ही जेल की रिहा करने का आदेश दे चुकी है ऐसे में अंसल बंधुओं के जेल में रखने का कोई तर्क नहीं बनता है।
हालांकि इस फैसले के साथ कोर्ट ने सुशील अंसल और गोपाल अंसल पर अलग-अलग 2.25 करोड़ रुपये और अन्य दो पर तीन लाख रुपये के जुर्माने को बरकरार रखा, जिसे मजिस्ट्रेट कोर्ट द्वारा 8 नबंर 2021 को लगाया गया था।
जज ने फैसला सुनाते कोर्ट रूम में मौजूद उपहार पीड़ित एसोसिएशन की अध्यक्षा नीलम कृष्णमूर्ति से कहा, “कोर्ट को आपके साथ पूरी सहानुभूति हैं। उस हादसे में कई लोगों की जान गई, जिसकी भरपाई कभी नहीं हो सकती है लेकिन आपको यह समझना चाहिए कि दंड का विधान प्रतिशोध पर नहीं तय होता रहै। हमें अंसल बंधुओं की उम्र पर भी विचार करना होगा, जो जेल की सजा काट रहे हैं। अगर आपने दर्द सहा है, तो उन्होंने भी सहा है।”
इस फैसले के बाद कोर्ट रूम में उपहार पीड़ित एसोसिएशन की अध्यक्षा नीलम कृष्णमूर्ति ने जज से कहा कि आपका आदेश हमारे लिए अन्याय है और इस फैसले से हमारा न्यायपालिका पर से विश्वास उठ गया है।
उन्होंने कहा, “यह बेहद अन्यायपूर्ण फैसला है। अगर आरोपी अमीर और ताकतवर है तो क्या हम न्यायपालिका पर भी भरोसा नहीं कर सकते हैं। मैंने कोर्ट में आकर गलती कर दी। सिस्टम भ्रष्ट है।” इसतना कहते हुए कृष्णमूर्ति कोर्ट रूम से बाहर निकल गईं।
मालूम हो कि 13 जून 1997 को दिल्ली के उपहार सिनेमा हॉल में जेपी दत्ता की फिल्म ‘बॉर्डर’ की स्क्रीनिंग हो रही थी। उसी दौरान उपहार सिनेमा में आग लग गई, जिसमें 59 लोगों की जान चली गई थी।